संजीव चौहान
संदर्भ – भारत की पहली महिला आईपीएस प्रकरण, ‘गूगल’ और खुद के ‘अल्प-ज्ञान’ पर शर्मिंदा हूं
शनिवार को शाम ढले करीब साढ़े सात बजे मेरे एक कथित पूर्व हम-पेशा शुभचिंतक मोबाइल पर अवतरित हुए । लंबे अरसे बाद। फरमा रहे थे कि, आजाद भारत की, किरन बेदी ही पहली महिला आईपीएस हैं। उनका कहना था कि, मैं अपने लेख पर थोड़ा ध्यान दे लूं। अप्रत्यक्ष रुप से या यूं कहूं कि वे साहब मुझे घुमा-फिराकर समझा रहे थे, कि वो मुझसे ज्यादा ज्ञानी हैं, और मैंने कई बे-कसूरों को नाथकर जिंदा ही गरम तेल के कड़ाहे में डालकर मार डालने जैसा जघन्य अपराध कर दिया हो। किरन बेदी के पहली महिला आईपीएस न होने से संबंधित लेख लिखकर।
जो साहब मुझे ज्ञान बघार रहे थे। ज्ञान बघारकर मेरी भूल सुधार कराने के चक्कर में खुद से ही अकेले अपने आप से भिड़े हुए थे, वो यह भी भूल बैठे, कि जव वो हाई-स्कूल इंटर में कहीं किसी स्कूल में किताबों का बोझ ढो रहे होंगे, तो मैं सन् 1990-92 में दिल्ली की सड़कों पर धक्के खा रहा था। पत्रकार बनने की सनक में। मेरे ज्ञान-चक्षुओं को रोशन करते समय अंधत्व के शिकार यह साहब इतना तक भूल गये, कि संजीव चौहान ने इसी दिल्ली में बसों के रंग बदलते देखे हैं। रेड-लाइन से ब्लू-लाइन और फिर ब्लू-लाइन बसों की कहानी को ज़मींदोज होते भी संजीव चौहान ने इसी दिल्ली में देखा है। अपनी आंखों से।
मैं कतई नहीं कह रहा हूं, कि मै महाज्ञानी हूं, लेकिन चलते-फिरते भाई-लोग यह भी न समझें कि पत्रकारिता और लेखन में मैं उनसे भी गया-गुजरा हूं। ताकि जब उनकी ज्ञान-शक्ति उफान मारे तो सब की सब उल्टी मेरे ही ऊपर न कर दें। और मैं उनसे अपने ऊपर यूं ही, उल्टी करवाता रहूंगा, वो इस खुश-फहमी के साये में जीने का मुगालता भी न पालें। अरे भाई अगर मैंने किरन बेदी पर लिखा है, तो मेरे लेख से पहले तमाम दुनिया किरन बेदी के पहली महिला आईपीएस अधिकारी न होने की खबरों से पटी पड़ी है। पहले उन सबसे तो निपटो। अखबार की कतरन सही है या गलत, यह वे पहले खुद ही पता कर लेते। उसके बाद मुझ अल्पज्ञानी को ज्ञान-बांचते, तो क्या ठीक नहीं होता।
अगर अपने ही गिरहवान में झांकूं तो, मुझे तो आभास होता है कि, मैने जो लिखा है, वो किरन बेदी के संबंध में लिखने से पहले अपने लिए ही लिखा है। अपनी ही जानकारी/ज्ञान को कटघरे में खड़ा किया है। और अपने अल्पज्ञानी होने पर सहज ही माफी भी मांग ली है। क्या खुद से ही मेरा माफी मांगना गलत है। अब बताओ ज्ञान बघारने वाले मेरे कथित शुभ-चिंतक, मुझे यह तो समझा रहे हैं कि, मेरे लेख में गलती है, इसकी शाबासी नहीं दे रहे हैं, कि अपने कम ज्ञान के लिए (अगर अखबार की कतरन वाली खबर सही पुष्ट होती है तो) मैं इस लेख में खुलेआम माफी मांग रहा हूं। हां, अगर किरन बेदी को लेकर मैंने अपनी तरफ से कुछ अटरम-शटरम धर-पेला होता, तो मैं इन साहब का ज्ञान लेकर इनसे भी माफी मांग लेता।
जहां तक मुद्दा है कि, किरन बेदी आजाद भारत की पहली महिला आईपीएस अधिकारी थीं या नहीं, इसकी पुष्टी मुझे कथित ज्ञान बघारने वाले खुद भी कर लें। और चले जायें किरन बेदी के पास मेरी शिकायत करने….इस मैनपुरिया चौहान की ऐसी-तैसी करवाने की गलतफहमी पाले। अरे उस्ताद जी मैंने अपने अल्पज्ञान पर माफी मांगी है, इसका तो कोई श्रेय नहीं, मेरी जानकारी गलत है, इस पर चले आये ज्ञान बांचने। जबकि पूरा देश जानता है कि किरन बेदी पर लिखे लेख की जानकारी एक उस अखबारी कटिंग की जानकारी पर आधारित है, जो सोशल-मीडिया में वायरल हुई है। अब मुझे ज्ञान बांचने वाले उस्ताद जी यह तो सोचो कि संजीव चौहान ने किरन बेदी के खेत की कौन सी मूलियां खोद डाली हैं। यह तो तुम उसका पता करो जिसने अखबार की कटिंग वायरल की है या करवाई है। मैं तो अपने ही अल्पज्ञान पर माफी मांग रहा था अपने लिखे इससे पहले वाले लेख में। अब बताओ मेरे शुभचिंतकों कि इस देश में तहेदिल से, बेफिक्री से और ईमानदारी से सार्वजनिक रुप से माफी मांगना भी क्या गुनाह है? और अगर जानकारी किसी गैर की हो, तो फिर उस पर मैं काहे को विधवा विलाप करुं? अगर किरन बेदी पहली महिला आईपीएस हैं, तो वो जाने और अगर नहीं हैं, तो यह खबर जमाने-भर में जहां से रपटी है, या जिसने फैलायी है, वो जाने। संजीव चौहान की ही गर्दन इतनी कमजोर क्यों नजर आ रही है, मेरे कथित शुभ-चिंतकों को, जिन्हें कोई भी सड़क-छाप, चलता-फिरता, जो चाहे उसे नीचे झुकाकर अपनी अज्ञानता के बोझ की गठरी उस पर लाकर लटका जाये। शोक वो लोग खुद पर मनायें और वो शरमायें, जिन्होंने चैनल/मीडिया-कार्यकाल में /न्यूज-रुम में खबर के नाम पर शाम को चार बजे आकर सिवाये डायरेक्टर न्यूज या फिर टीम-हेड के आगे-पीछे घूमने और दांत-निपोरकर घिघियाने के सिवाये जिंदगी भर करा-धरा तो कुछ नहीं और चले मेरे ज्ञान-चक्षु खोलने।