सैफुल्लाह के पिता की मीडिया से यह एक तरह की अपील है…

जाली टोपी, लंबी दाढी और उटंग पाजामे वाला पिता :

जो अपने देश का नहीं हुआ, वो मेरा क्या होगा ? लिहाजा मैं उसका शव नहीं ले सकता.

हिन्दुस्तान के एक पिता का अपने बुनियादी धर्म( पिता धर्म ) छोडकर ऐसा कहना आसान तो नहीं कहा होगा. लेकिन का देश के ऐसे हजारों पिता पर के बारे में राय काम करने से पहले क्या तब भी दाढी, जाली टोपी और उटंग पाजामे पहले याद आएंगे ?

इस पिता ने ऐसा कहकर इस देश को और उससे भी जियादा मुख्यधारा मीडिया से एक तरह से अपील की है कि हम इस्लाम पिता को स्टीरियोटाइप छवि में कैद करना बंद कीजिए प्लीज. इस देश से प्यार
करने और तबाह करने के बीच की विभाजन रेखा खींचना इतना आसान नहीं है कि आप एक क्रोमा-वॉल से निष्कर्ष तक पहुंच जाए..

पिता, तुमनेऐसा कहकर तुमने मेनस्ट्रीम मीडिया की मुश्किलें तो बढा दी लेकिन उन लाखों पुता की जिंदगी थोडा ही सही, आसान कर दिया. हिन्दुस्तान की उस आत्मा को बचाने की कोशिश की है जो शायद कई सारे इवेंट भी मिलकर नहीं कर पाते.

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