सहारा में हालात बाद से बदतर होते जा रहे हैं. चार महीने से सैलरी नहीं मिली है और न मिलने की संभावना दिख रही है. ऐसे में मीडियाकर्मियों के धैर्य का बाँध टूटता जा रहा है. अभी-अभी सूचना के मुताबिक़ सहारा के नोयडा कैम्पस में हंगामा हुआ है और काम रोको आंदोलन भी शुरू हो चुका है. यदि हालात नहीं बदले तो स्थिति और भी अधिक गंभीर होने वाले हैं. सहारा के वर्तमान हालात पर एक सहाराकर्मी की रिपोर्ट –
अज्ञात सहाराकर्मी
सहारा के मीडियाकर्मियों का धैर्य खोता जा रहा है। नवंबर की सैलरी उन्हें फरवरी महीने में तब मिली जब मीडियाकर्मियों ने जयव्रत राय से सामूहिक जाकर सवाल जवाब किया। उस समय जयव्रत राय ने कहा कि अगले महीने यानि मार्च से हर माह एक माह की सैलरी देने का दो हजार फीसदी कोशिश की जाएगी। लेकिन उनके आश्वासन देने के कुछ ही दिनों के बाद उन्होंने सारे चैनल्स हेड को बुलाकर कहा कि वे इस्तीफा दे रहे हैं। अब सारा काम वरुण दास देखेंगे। इस घटनाक्रम के बाद सारे मीडियाकर्मी सन्न रह गए। किसी को इस खबर पर भरोसा ही नहीं हुआ। हालांकि कुछ दिनों के बाद इस खबर की पुष्टि हो गई कि जयव्रत राय ने सहारा हाउसिंग फायनेंस के डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया। कंपनी ने इस बाबत बीएसई को सूचना दे दी। इस बीच जयव्रत राय के पीए राजेश राय को मीडिया हेड बना दिया गया।
मार्च महीने में ये खबर फैली कि 20 से 23 मार्च तक दिसंबर की सैलरी मिलेगी। इस बीच लखनऊ से ये खबर आई कि सहारा क्रेडिट सोसायटी के डिप्टी मैनेजर प्रदीप मंडल ने सहारा शहर में मकान से कूदकर जान दे दी। वे भी सैलरी न मिलने से काफी परेशान थे। लेकिन सबसे दुखद बात ये रही कि प्रबंधन ने स्व. मंडल पर ही तोहमत मढ़ दिया। कि वे सैलरी न मिलने से परेशान नहीं थे बल्कि वे अपने निजी जीवन में परेशान थे।
लेकिन नोएडा कैंपस के पत्रकारों का गुस्सा उस वक्त भड़क गया जब यूपी चैनल में काम करने वाले अमित पांडे का लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में निधन हो गया। अमित को टायफायड हो गया था और वो अपना इलाज भी कराने की स्थिति में नहीं थे। स्थिति बिगड़ने के बाद लखनऊ के सहारा अस्पताल ने उन्हें भर्ती करने से ही मना कर दिया। यानि परिवार का दंभ भरनेवाले संगठन के सदस्य को ही सहारा अस्पताल ने इलाज मुहैया नहीं कराया। 26 मार्च को जब इसकी खबर नोएडा में पत्रकारों को लगी तो वो भड़क गए। पहले तो वे राजेश राय से पूछने गए लेकिन उनके मीडिया हेड बनने के बाद से वे एकाध बार ही कैंपस में दिखाई दिए। उनका सारा समय तिहाड़ जेल के पास ही मालिक की मिजाजपुर्सी में गुजरता है।
ऐसे में सारे पत्रकार सीईओ वरुण दास से मिलने गए। लेकिन वरुण दास ने साफ कह दिया कि वे कंपनी के इंप्लाई नहीं है। उनसे किसी विषय पर बातचीत मत करो। अगर उन्हें जाना है तो सैलरी के लिए सुप्रीम कोर्ट भी जा सकते हैं। उन्होंने ऐसे बोला जैसे वरुण दास इसके बारे में कुछ जानते ही नहीं हों। इसमें बड़ा सवाल ये है कि अगर वरुण दास सहारा के कर्मचारी नहीं हैं तो उनकी सुविधा के ऊपर सहारा का जो खर्च हो रहा है वो क्यों हो रहा है? उनके लिए गाड़ी, ड्राईवर, चपरासी और अलग से एसी केबिन क्यों मुहैया करायी गई है? आखिर कोई परेशान कर्मचारी अपनी बात कहां रखे ? अगर राजेश राय को मीडिया हेड बनाया गया है तो वे समस्या का समाधान क्यों नहीं करते ?
नोएडा कैंपस में इस बात की भी चर्चा है कि कर्मचारियों की दिसंबर माह की सैलरी आई थी। लेकिन उस सैलरी को सारे डिपार्टमेंट हेड, एचआर, और एकाउंट्स के लोगों के बीच बांट दिया गया। चर्चा तो यहां तक है कि बॉस के ड्राईवर को पचास हजार रुपये एडवांस में दिए गए। इसके पहले बोनस भी आया लेकिन वो बॉसेज ने अपने पेट्रोल भरवाने के लिए ले लिया।
पत्रकारों का दुख ये है कि एक तो सैलरी नहीं मिल रही और जो कुछ भी आ रहा है वो ऊपर ही ऊपर मार लिया जा रहा है। ये मैनेजर्स ये कभी नहीं चाहते हैं कि चैनल बंद हो। अगर चैनल या अखबार बंद हो गया तो उनकी ऊपरी आमदनी मारी जाएगी। लेकिन निचले कर्मचारियों के लिए जब भी कुछ आता है तो वो मारना भी चाहते हैं।