सैयद एस.तौहीद @ Passion4pearl@gmail.com
बॉलीवुड की खेलों पर आधारित फिल्मों में नवीनतम कड़ी बदलापुर बॉयज रिलीज हो गयी. खेलों पर बनी लगान व चक दे इंडिया से शुरू हुए सिलसिले में नयी कड़ी बदलापुर की कहानी जुड़ गयी है. नहर नहीं होने से बदलापुर सालों से सूखे की मार झेल रहा. गांव के असहाय लोगों से किए गए वायदे को लेकिन नजरंदाज़ किया जा रहा.कोशिशों के बावजूद पानी की समस्या नहीं हल न होने पर विजय के पिता ने आत्मदाह कर लिया. गांव ने विजय के पिता की शहादत को इज्जत देने बजाए सनक करार दिया.सामान्य फिल्मों की तरह विजय पिता का बदला लेने की नहीं सोचता बल्कि उनके सपने को पूरा करने का संकल्प लेता है. विजय पिता के सपने को साकार करने की राह पकड़ ली.बदलापुर के बेजान कबड्डी टीम में शामिल होकर उसकी किस्मत बदलने का जुनूं उसमे था. पिता के यूं अचानक चले जाने बाद विजय को जमींदार के यहां मजदूरी करनी पड़ी. सारी बाधाओं बावजूद उसका कबड्डी का जुनून बरकरार रहा. विजय की इस कहानी में प्यार का एंगल सपना थी.
गांव बदलापुर टीम की शुरुआत निराशाजनक रही .विजय गांव की कबड्डी टीम में पहले पहल खेल नहीं सका लेकिन हर बार टीम का एक्स्ट्रा खिलाड़ी जरूर बना.हालात से उपजे वजहों ने विजय को खेलने का अवसर दिया.इसी बीच लखनऊ में कबड्डी प्रतियोगिता की खबर बदलापुर टीम को जीने की वजह दे गयी. सभी सम्मान की लड़ाई में लखनऊ जाने का निर्णय लेते हैं .वहां उनकी मुलाकात रेलवे अपने भावी कोच सूरजभान सिंह (अनु कपूर) से हुई. विजय को देखकर रेलवे टीम के कोच सुरजभान सिंह को महसूस हुआ कि मौका मिलने पर यह युवा कबड्डी में अपना अलग मुकाम बना लेगा. लखनऊ मुकाबले में एक टीम के शामिल न होने पाने की वजह से बदलापुर गांव की टीम को जगह मिली.सूरजभान सिंह मुकाबले में गांव की इस टीम को बदलापुर बॉयज़ नाम से शामिल करने में सफल हुए. कहना जरुरी कि कहानी में कबड्डी मंजिल का रास्ता नजर आई मंजिल नहीं. शायद इसलिए कि खेल के जोश साथ एक संवेदनशील कहानी कहने की कोशिश हुई.
फिल्म बदलापुर बॉयज देखते वक्त दिल में यहीं बात आती रही कि काश इस कबड्डी टीम के कप्तान या फिर कोच शाहरुख, सलमान या आमिर होते तो बॉक्स आफिस का नजारा ही बदल जाता.लेकिन फ़िल्म को यह सुविधा नहीं.यदि कोई खान या नामी सितारा फिल्म का कोच या स्टार खिलाड़ी होता तो मुहूर्त शॉट ओके होने से पहले ही बड़ी कीमत की एडवांस डील कतार में खड़ी होती! बदलापुर के नए चेहरेवाले खिलाड़ियों की टीम के साथ कोच अन्नू कपूर शाहरुख़ सलमान की तरह भीड़ नहीं ला सकते.लेकिन क्या बड़े सितारे ही एक फ़िल्म को कामयाब कर सकते ?
फिर भी रुझान बहुत अधिक उत्साहजनक नहीं. मशहूर लगान से तुलना करने पर बदलापुर एवं लगान में समानताएं नजर आएंगी.आत्मा के हिसाब से नहीं प्रस्तुती स्तर पर ही अंतर नजर आएगा. बदलापुर के ग्रामीण नहर बनने बाद के सुखी दिनों का इंतज़ार कर रहे. नहर बंजर होती उपजाऊ जमीन को बचा लेगी. जबकि लगान के भुवन ने अंग्रेजों से गांव का लगान माफ कराने के लिए टीम बना कर क्रिकेट खेला.बदलापुर में भी कोच सूरज भान की अगुवाई में मजदूरी करने वाला विजय एवम उसके साथी कबड्डी मुकाबले में भाग लेकर गांव में नहर बनवाने का सपना पूरा करने निकले थे.अफसोस लगान की तरह किसी नामी निर्माता या डायरेक्टर का नाम बदलापुर पास नहीं .क्या यही वो फर्क होगा जो बदलापुर को महान नहीं होने देगा ? शायद क्योंकि खेलों पर आधारित बाकी फिल्मों साथ बड़े सितारों का नाम जुडा था. फ़िल्म की कास्टिंग भी दुखों को बढ़ा रही.एक्टिंग जानदार पहलू होना चाहिए था…अफसोस यह बातें फ़िल्म को कमजोर कर रहीं.अनु कपूर का अभिनय लेकिन फ़िल्म की खासियत बन रही. क्या वो दर्शकों को सिनेमाघर ला सकेंगे ? बदलापुर की ईमानदार कोशिश फिर भी फ़िल्म देखने की वजह बनेगी. नवोदित शैलेश की तारीफ करनी चाहिए कि सीमित साधनों के साथ कहानी को कारगर तरीके से रखा. काश कबड्डी की इस टीम में अथवा अगुवाई में कबीर या फिर भुवन होता! बालीवुड में कहानी से ज्यादा सितारों का नाम मायने रखता है. लेकिन एक हिस्सा बदलापुर किस्म के सिनेमा का भी कहीं जरुर होगा. पोपुलर निजाम से ईमानदार कोशिशों को नुकसान नहीं होना चाहिए.