गोवाहाटी यौन उत्पीड़न मामले का आरोपी रिपोर्टर, वापस न्यूजलाइव चैनल में : गुवाहाटी में हुई यौन उत्पीड़न की घटना आपको याद है न ! पिछले साल 9 जुलाई की शाम एक टीनएज अपने दोस्तों के साथ बर्थ डे पार्टी मनाकर रेस्तरां से लौट रही थी कि कोई बीस लोगों ने उसे चारों तरफ से घेर लिया था जिनमे से तीन ने तो उसके कपड़े तक फाड़ डाले और जिस बर्बरता का नमूना पेश किया,आपने न्यूज चैनल,अखबार,यूट्यूब जैसे दूसरे माध्यमों से देखा होगा. करीब सप्ताहभर तक इस घटना की खबर मेनस्ट्रीम मीडिया में किसी न किसी रुप में बनी रही जबकि घटना के अगले दिन की लगभग सारे चैनलों की प्राइम टाइम बहस इसी को लेकर हुई थी. अखबारों की हेडलाइन भी.
इस पूरी घटना में असम के एक चैनल न्यूजलाइव के रिपोर्टर गौरव ज्योति नेओग का नाम बार-बार सामने आया और अन्ना समूह के अखिल गोगोई ने आरोप लगाया था कि इस संवाददाता ने न केवल ऐसा करने के लिए लोगों को उकसाने का काम किया बल्कि इसकी पूरी वीडियो शूट किया और इधर चैनल ने लड़की के विरोध में जाकर मोरेल पुलिसिंग का काम किया. तहलका,अंग्रेजी के लिए रत्नदीप चौधरी ने जब स्टोरी की तो साफ लिखा कि न्यूज लाइव ने अपनी स्टोरी में लड़की के चरित्र को डिग्रेड करके लगभग एकतरफा स्टोरी प्रसारित किया.( Guwahati molestation case verdict pricks many uncomfortable questions). मेनस्ट्रीम मीडिया में न्यूजलाइव के इस संवाददाता की धीरे-धीरे प्रमुखता से इस तरह से खबर आने लगी कि शुरुआती दौर में चैनल ने सफाई देने की कोशिश भले ही की हो लेकिन जल्द ही उसे बर्खास्त कर दिया. इससे हुआ ये कि देशभर में गुस्से से उबल रहे लोगों के बीच ये चैनल निशाने पर आने से बच गया. इधर जो थोड़ी बहुत कसर रह गई थी, उसे तथाकथित मीडिया को साफ-सुथरा और बेहतर बनाने के लिए बनायी गई सेल्फ रेगुलेशन वाली संस्था बीइए ने पूरी कर दी.
17 जुलाई को प्रेस विज्ञप्ति जारी करते हुए बीइए (Broadcast Editors’ Association) ने बताया कि गुवाहाटी मामले की जांच के लिए तीन सदस्यीय (वरिष्ठ टीवी एंकर दिबांग, बीइए के सचिव एनके सिंह और आईबीएन 7 के प्रबंध संपादक आशुतोष) जांच समिति गठित की गई है। यह समिति वहां जाकर पता लगाएगी कि इस पूरे मामले में क्या वाकई किसी मीडियाकर्मी की भूमिका शामिल है। जरूरत पड़ने पर वह निर्देश भी जारी करेगी कि ऐसे मामलों में पत्रकारिता-धर्म का किस तरह से निर्वाह किया जाना चाहिए?
बीइए की इस पहल पर गौर करें तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि गौरव ज्योति, गोगोई और न्यूज लाइव चैनल का जो मसला पूरी तरह कानूनी दायरे में आ चुका था, उसके बीच वह अपनी प्रासंगिकता स्थापित करने की कोशिश में लग गई। आमतौर पर मीडिया की आदतन और इरादतन गड़बडि़यों को नजरअंदाज करने वाली संस्था बीइए अगर ऐसे कानूनी मामले के बीच अलग से जांच समिति गठित करने और रिपोर्ट जारी करने की बात करती है तो इसके आशय को गंभीरता से समझने की जरूरत है। बीइए अपना नाम चमकाने और न्यूजलाइव को लोगों के गुस्से से दूर रखने के अलावे किसी भी दूसरे उद्देश्य से इस तीन सदस्यीय कमेटी का गठन नहीं किया था,ये बात लगभग सालभर बाद और स्पष्ट हो गई जब इस संवाददाता को लेकर हमें चौंकानेवाली खबर मिली.
इधर लगातार हमारे पास ये खबर आ रही थी कि न्यूजलाइव ने अपने इस संवाददाता को दोबारा अपने चैनल में जगह दे दी है. हमने असम में अपने सूत्रों से फोन पर बातचीत करके ये कन्फर्म किया कि ये खबर सही है और ये शख्स वहां काम कर रहा है. ये वही संवाददाता है जिसे लेकर आज से सालभर पहले चैनल दाएं-बाएं कर रहा था और ये भी बात उठी थी कि जब वो छुट्टी पर था तो इस घटना की कवरेज क्यों करने चला गया था ? चैनल ने उस समय इस संवाददाता से पल्ला झाड़ने के लिए जो-जो तर्क दिए, उसकी तह में जाएंगे तो आपको मीडिया का बहुत ही घिनौना रुप सामने आएगा लेकिन फिलहाल हम बातचीत को दूसरे सिरे से देखते हैं.
ये बहुत संभव है कि गौरव ज्योति कि इस पुनर्नियुक्ति पर सवाल खड़ी करने की स्थिति में उल्टे सवालकर्ता से ही सवाल किए जाएं कि जब कोर्ट ने इसे बाइज्जत बरी कर दिया है( हालांकि अभी तक ये पूरी तरह स्पष्ट नहीं हुआ है, सूत्र बताते हैं कि मामला अभी भी चल रहा है.) तो फिर आपको क्या दिक्कत है और फिर चैनल किसको रखे, किसको हटाए,ये उसका निजी फैसला है. इस पर सवाल करना बेतुकी बात है. लेकिन क्या बीइए और उसकी जांच कमेटी के सदस्यों आशुतोष,एन.कें.सिंह और दिबांग से भी सवाल करना बेतुका है कि जब आपने 17 जुलाई को इस मामले में जांच कमेटी गठित करने के बाद रिपोर्ट देने की बात कही थी, उसका क्या हुआ? रिपोर्ट तो छोड़िए, आपको ये पता भी है कि वो संवाददाता दोबारा उसी चैनल में चला गया जिस पर कि यौन उत्पीड़न को बढ़ावा देने और शूट करने के आरोप लगे थे ? जहां तक मुझे जानकारी है उस वक्त तो बीइए ने कमेटी गठित करने की बात प्रेस रिलीज जारी करके सार्वजनिक की लेकिन इस संवाददाता के दोबारा वापस उसी चैनल में काम करने को लेकर कुछ भी नहीं कहा. अगर संवाददाता दूध का धुला भी है तो क्या ये बात बीइए की जांच से स्पष्ट हुई है और अगर ये सब कोर्ट के ही विचाराधीन है तो उस वक्त जब ये पूरा मामला पूरी तरह कानूनी हो चुका था तो इसमे अलग से बीइए को बीच में पड़ने की क्या जरुरत थी ? तब दिबांग ने बड़ी शान से इस कमेटी में ट्वीट होने की बात ट्वीट किया था लेकिन उसके बाद इस संवाददाता के वापस जाने की बात पर कहीं कुछ नहीं. अगर आप ये सवाल करते हैं तो आपको ये समझने में मुश्किल नहीं होगी कि जिस तरह सरकारी तंत्र किसी भी घटना के तुरंत बाद जांच कमेटी गठित करने और मुआवजा देने की घोषणा में तत्परता दिखाता है, ठीक उसी तरह मीडिया के सेल्फ रेगुलेशन के ये अड्डे जांच कमेटी गठित करने की बात करके करते हैं. बाद में इसे पलटकर देखना और सार्वजनिक करना जरुरी नहीं समझते क्योंकि इन संस्थाओं का काम किए पर पर्दा डालने से ज्यादा नहीं है.
( संदर्भः गोवाहाटी की घटना को लेकर मैंने जनसत्ता में एक लेख लिखा था- “जिसकी निष्ठा खुद कटघरे में हो“. इस लेख में हमने बताया था कि बीइए जैसी संस्था ने ऐसा कोई पहली बार नहीं किया है, पहले भी कर चुका है और आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले को दस दिन के अंदर आधी-अधूरी रिपोर्ट में निबटा दिया. आप चाहें तो पूरे मामले को विस्तार से जानने के लिए वो लेख भी पढ़ सकते हैं.)