वेद उनियाल, वरिष्ठ पत्रकार
एनडीटीवी इंडिया के हालिया एंकरिंग को लेकर पत्रकार वेद उनियाल की एक टिप्पणी –
एक अच्छेे पत्रकार का भटकाव दिखता जा रहा है कभी इनके प्राइम टाइम को बहुत रुझान से देखते थे। लेकिन समय ने इन्हें बदल दिया। अपने मन की छुपी इच्छाओं को जमीर का नाम नहीं देना चाहिए। जमीर कभी यह नहीं कहता कि आप नितिश लालू की खुळी तरफदारी करें। बिना बात टीवी का काला पर्दा दिखाकर लोगों को भयभीत करो।
रातों रात किसी कन्हैया को जयप्रकाश नारायण बना दो। जमीर यह भी नहीं कहता कि टीवी वार्ता में जिसकी बात पसंद न आए उसके सामने से कैमरा हटा दो। जमीर यह भी नहीं कहता कि जो लालू राज पंद्रह साल तक बिहार को बर्बाद करता रहा उस पर तीखी टिप्पणियों के बजाय उनके चुटकीलों मुहावरों पर रंग जाओ। जमीर तो यह भी कहता है कि बहुत मैं मैं भी अच्छा नहीं। टीवी की चर्चाओं को आत्मकेंद्रित करना भी एक अपने ढंग का अंहकार है। अपने ढंग की एक सत्ता का गुरूर है। जमीर आपको यह सोचने को विवश नहीं करता कि पत्रकारिता केवल दिल्ली में बैठे पच्चीस लोगों की दुकान नहीं। पत्रकारिता गांव गांव कस्बों में फैली है। आपका जमीर कब आपको बताएगा कि आप पत्रकारिता के स्वयंभू नहीं हो। महज एक पत्रकार हो।
राजेंद्र माथुर, प्रभाष जोशी, श्यामा प्रसाद काला, हरीश चंदोला, वी करंजिया, पी साईनाथ कितने ही शानदार पज्ञकारों ने दशकों अपना काम किया। कभी मैं मैं नहीं किया। कुछ तो आपके खासमखासों ने आपको भगवान बना दिया और कुछ आप भी पत्रकारिता के भगवान बनने के लिए जरूरत से ज्यादा आतुर दिखते हैं। प्लीज आप बौद्धिक है, क्रिएटिव है। आगे बहुत अच्छी पत्रकारिता करेंगे। लेकिन सेलिब्रिटी होने का अलग अंदाज आपको मूल पत्रकारिता नहीं करने दे रहा है। जबकि समाज में हम जैसे सामान्य लोग आपसे केवल पत्रकारिता ही चाहते हैं। हां अब तक जो भी किया हो। आप करे या न करें मगर आपके साथ चाटुकारिता शब्द जुडना ही दुख देता है। क्योंकि आपको कुछ और होना था। आप एक कन्हैया के लिए नहीं, देश के लाखों कन्हैया के
लिए है। वो कन्हैया मौज मार रहा है। आप बिना वजह चिंतक बने हैं। सुधीर, रजत, अर्नब, चौरसिया से भी यही सवाल है दूसरेे नहीं।
(स्रोत-एफबी)