ये अखबार वाले भी न। ये भी नही समझते एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय माफ़ कीजिएगा, रवीश कुमार के प्रताप को। अब कल मैंने जो लिखने से मना किया था। आज वही छाप दिए। दंग हूँ मैं आज का टाइम्स ऑफ़ इंडिया पढ़कर। ये तो खबर छाप दिए है बिहार कांग्रेस के उपाध्यक्ष और बिहार कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष के बेहद करीबी ब्रजेश पांडेय सेक्स स्कैंडेल में फंसे। पद से इस्तीफ़ा दिए। रेप के साथ-साथ पॉस्को (बच्चों का शोषण वाली धारा) भी लगा। हाँ हाँ वही। एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय (उफ़ ये आदत), माफ़ कीजिएगा, रवीश कुमार के सगे बड़े भाई ब्रजेश पांडेय।
अरे टाइम्स ऑफ़ इंडिया वालों, तुम्हारी मति मारी गई है। अभी रवीश कुमार ने इस मामले में चुप्पी तोड़ी नही और तुम ख़बर छाप दिए। अरे रवीश कुमार चुप हैं, इसका मतलब कि वो दलित लड़की झूठी है। मतलब कि वो साजिश कर रही है। जो आरोप लगा दी है। और बिहार पुलिस की सीबीसीआईडी भी वाकई में पगलाए गई है जो अपनी जांच में प्रथम दृष्टया आरोप सही पाय रही है। सुन लो, ऐ दुनिया वालों, सूली पर टांग दो ऐसी दलित लड़कियों को जो रवीश कुमार के भाई पर। जो रवीश कुमार के परिवार पर। कोई आरोप लगा दें। अब बताओ इतनी बड़ी बात हुई है। बिहार कांग्रेस का प्रदेश उपाध्यक्ष दलित बच्ची के यौन शोषण में फंसा है। सेक्स रैकेट का मामला अलग है। पॉस्को अलग लगा है। बिहार पुलिस तलाश रही है। वो फरार अलग है। टाइम्स ऑफ़ इंडिया से लेकर आजतक चैनल तक। सब अब तक इस ख़बर पर आए चुके हैं। छाप रहे हैं। दिखाए रहे हैं। पर रवीश पांडेय…. उफ़…. रवीश कुमार चुप हैं। अरे, भाई लोगों कोई तो वजह होगी। समझो इस बात को।
झूठी होगी वो दलित की बिटिया। नही तो अभी तक कोट टाई पहनकर शमशेर, बाबा नागार्जुन और गोरख पांडेय की एक दुई क्रांतिकारी कविता पढ़ते हुए रवीश कुमार आ गए होते 2जी में फंसी एनडीटीवी की स्क्रीन पर। और चीख चीखकर अपने भाई ब्रजेश पांडेय से सवाल कर रहे होते। धोय रहे होते पटना पुलिस को। कि ऐसी कौन सी जगह छुप गया है ब्रजेश पांडेय कि अब तक उसे गिरफ्तार भी न कर पाय रही है। सुन लो ए दलित लड़कियों! जब तक रवीश कुमार से नैतिकता का सर्टिफिकेट न मिल जाए, तुम सब अनैतिक हो। झूठी हो। साज़िश करने वाली हो। सुधारो अपने आप को। माफ़ी मांगो तुरन्त। ब्रजेश पांडेय से। रवीश पांडेय से। माफ़ कीजियेगा, रवीश कुमार से।
कल से ही रवीश पांडेय के भक्त हमको गालियां दिए पड़े हैं। पूछ रहे हैं कि तुम इंडिया टीवी से हो। जलते होगे एनडीटीवी वाले रवीश पांडेय से। अरे मोरे भाई, हम इलाहाबाद से हैं। इलाहाबादी हैं। इसी यूनिवर्सिटी का लहू बहता है हमारी धमनियों में। हम न जलते हैं। न डरते हैं। न किसी नाम से आतंकित होते हैं। न किसी पद से प्रभावित होते हैं। हम तो बस सिविल लाइन्स के सुभाष चौराहे पर एक कुल्हड़ वाली चाय पकड़कर बैठ जाते हैं, वहीं की फुटपाथों पर। पाश को पढ़ते हुए। पाश को गाते हुए –
“हमारे लहू को आदत है
मौसम नहीं देखता, महफ़िल नहीं देखता
ज़िन्दगी के जश्न शुरू कर लेता है
सूली के गीत छेड़ लेता है
शब्द हैं की पत्थरों पर बह-बहकर घिस जाते हैं
लहू है की तब भी गाता है।”
जय हिंद
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अभिषेक उपाध्याय,एडिटर,इंडिया टीवी-