सुधीर चौधरी और रवीश कुमार दोनों ZEE टीवी के जयपुर लिट्रेचर फ़ेस्टिवल के सम्मानित वक़्ता हैं। इसके बावजूद दोनों निष्पक्ष पत्रकार हैं।
दोनों JNU और देश भर के सामाजिक न्याय के आंदोलनों की अनदेखी करते हैं। दोनों कन्हैया को अपने चैनल पर ख़ूब दिखाते हैं। बुलाते हैं। दोनों दिलीप यादव और राहुल सोनपिंपले को बहस के लिए नहीं बुलाते। कभी नहीं।
दोनों ही ओपिनियन पोल में हर जगह हर बार बीजेपी को विजेता बताते हैं। और ओपिनियन पोल ग़लत होने पर मुस्कुरा देते हैं। बिहार में दोनों ने यही किया। अभी यूपी में वे ठीक यही करने वाले हैं।
दोनों अपने चैनल पर हिंदू और मुसलमानों को लड़ाकर RSS का काम करते हैं। एक कम्यूनल एंकर बन जाता है तो दूसरा सेकुलर एंकर। इसके बावजूद वे प्रगतिशील हैं।
किसी बहुजन बुद्धिजीवी को इतने वाइड स्पेस में मूव करने की सुविधा नहीं है। बहुजन बुद्धिजीवियों की हर बात माईक्रोस्कोप से जाँची जाती है। उसकी एक चूक उसे बर्बाद कर सकती है। सबकी नज़रों से गिरा सकती है। वह पुरस्कार नहीं ले सकता।
कल्पना कीजिए कि अगर मैं ZEE न्यूज के लिट्रेचर फ़ेस्टिवल में चला जाऊँ, तो कैसा तूफ़ान सेकुलर ब्रिगेड मचा देगी। पिछली केंद्र सरकार द्वारा मुझे दिए गए राष्ट्रीय पुरस्कारों पर कितनी किचकिच मचाई गई। ZEE से लेकर वेदान्ता से पुरस्कार लेकर भी स्वर्ण बुद्धिजीवी बेदाग़ रह जाते हैं।
जनेऊ और जात की ताक़त से बड़ी और कोई ताक़त इस देश में नहीं है। रवीश और सुधीर से पूछ लीजिए।