राजीव गुप्ता
हिन्दुत्व पुरोधा अशोक सिंघल का नाम सुनते ही एक हिन्दूवादी छवि के नेता का चित्र मानस में उभरता है । ऐसा व्यक्तित्व जिसके जीवन का एक मात्र उद्देश्य था अयोध्या में भगवान राम का भव्य मन्दिर निर्माण करवाना । अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु इस व्यक्तित्व ने अजीवन संघर्ष किया । इसी वर्ष के 30 सितम्बर को भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता डा. सुब्रह्मण्यम स्वामी के साथ मिलकर अशोक सिंघल ने अपने जीवन की अंतिम प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए वर्तमान केन्द्रीय सरकार को अयोध्या में भगवान राम के भव्य मन्दिर निर्माण करने की तरफ अग्रेसित होने के लिए कहा । अशोक सिंघल को भारतीय तिथि के अनुसार पिछले मास 1 अक्टूबर को अपना 90 जन्मदिन मनायें हुए अभी चंद दिन ही बीते थे और दिल्ली के सिविक सेंटर में आयोजित उस कार्यक्रम में जो भी गया होगा उसने कभी यह कल्पना भी नही की होगी कि मात्र चंद दिनों बाद ही अशोक सिंघल हमारे बीच में नहीं होगें । अपने जन्मदिन के उस कार्यक्रम में अशोक सिंघल ने अपनी बुलन्द आवाज एक गीत ‘यह मातृभूमि मेरी, यह पितृभूमि मेरी..’ गाकर सबको आश्चर्यचकित कर दिया था । अपने सपने को अपनी मौत की आहट सुनकर भी कैसे जिन्दा रखा जाय, यदि यह जानना हो तो आपका अधिक पीछे जाने की जरूरत नही । गत मास हुए सिविक सेंटर में हुए उस कार्यक्रम को ध्यान कीजिए, जब विष्णु हरि डालमिया ने संघ परिवार की शीर्ष नेतृत्व मोहनराव भागवत तथा देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह की उपस्थिति में कह दिया अयोध्या में भगवान राम का भव्य मन्दिर बनवाकर अशोक सिंघल जी को जन्मदिन का तोहफा दे दीजिए । स्वतंत्र भारत के इतिहास में अशोक सिंघल एक ऐसा नाम बनकर उभरा जिससे वैचारिक मतभेद होने के बावजूद भारतवर्ष का शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा जो उनके व्यक्तित्व से परिचित न हो । अशोक सिंघल के कारण ही देश की राजनीति को भी राममन्दिर का ककरहा पढकर ही राजनीति करना पडा । उन्होंने देश के नेताओं को यह सिद्ध करके दिखा दिया कि धर्म से बढकर कोई राजनीति नही होती है । उनके राममन्दिर आन्दोलन ने ही लालकृष्ण आडवाणी को नायक और अटल बिहारी वाजपेयी को देश का प्रधानमंत्री बनाया । दूसरे शब्दों में, जिसने रामनाम से राजनीति शुरू किया वह राजनीति की वैतरिणी में पार हुआ ।
दो ध्रुवों की तरह आस्था और विज्ञान को साधने वाले अशोक सिंघल ने बीटेक की अपनी पढाई बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से किया था । लेकिन अशोक सिंघल ने नौकरी करने की जगह हिन्दुत्व की राह पक़डा और पहुंच गए गोरखपुर के गोरक्षनाथ मन्दिर । उन दिनों हिन्दुत्व की सबसे बडी प्रयोगशाला गोरखपुर का गोरक्षनाथ मन्दिर ही था । वहाँ पहुँचकर अशोक सिंघल ने गीताप्रेस और गीतावाटिका में वेदों और उपनिषदों का अध्ययन शुरू किया । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चतुर्थ सरसंघाचालक प्रो. राजेन्द्र सिंह उर्फ रज्जू भैया के माध्यम से अशोक सिंघल का संघ के साथ संबंध आया और वर्ष 1942 से स्थानीय ‘भारद्वाज शाखा’ जाने लगे । प्रो. राजेन्द्र सिंह के निर्देश पर वें श्री गुरू जी से मिलने नागपुर चले गए । गुरू जी से मिलने के बाद तो उन्होंने पीछे मुडकर ही नही देखा । रज्जू भैया और अशोक सिंघल, दोनों के पिता प्रशासनिक अधिकारी थे और इलाहाबाद में अगल – बगल में दोनों का घर होने के कारण पारिवारिक संबंध बहुत प्रगाढ था । 1949 में संघ पर प्रतिबन्ध लगने के कारण वें जेल भी गए । भानुप्रताप शुक्ल के पूछने पर संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गुरू जी ने एक बार कहा था कि संघ के कार्य को बढाने वाले नई पीढी में बहुत लोग हैं, उन लोगों में से नई पीढी में कानपुर के अशोक सिंघल भी हैं । कालांतर में अशोक सिंघल संघ के प्रचारक बने और लगभग 25 वर्ष तक उत्तर प्रदेश के विभिन्न जिलों में प्रचारक के नाते संघ का कार्य किया । बाद में वें देहरादून, हरिद्वार और उत्तरकाशी में भी प्रचारक रहे । दूसरे शब्दों में, पहले उन्हें साधु – संतों का सान्निध्य प्राप्त करने का सौभाग्य मिला और 70 के दशक में अशोक सिंघल ने जेपी आंदोलन में हिस्सा लिया । 1975 में देश में आपातकाल लगाया गया और 1977 में जब आपातकाल देश पर से हटा तो अशोक सिंघल को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, दिल्ली प्रांत का प्रांत प्रचारक बनाया गया । दिल्ली प्रांत प्रचारक होने के कारण 1977 में जनता पार्टी के गठन में पर्दे के पीछे उनकी बडी भूमिका थी । इमरजेंसी के दौरान वें भूमिगत हो गए थे । इमेरजेंसी खत्म होने के बाद संघ की योजना से वें विश्व हिन्दू परिषद भेजे गए । कालांतर में अशोक सिंघल वर्ष 1981 में 5 – 6 लाख की संख्या वाले विराट हिन्दू समाज के कार्यक्रम के संचालक के रूप में सार्वजनिक मंच पर वे पहली बार सामने आये । सन 1982 में वें विश्व हिन्दू परिषद के संयुक्त महामंत्री का दायित्व उन्होनें संभाला । वर्ष 1986 में विहिप के महामंत्री का दायित्व संभाला । तत्पश्चात विश्व हिन्दू परिषद के अध्यक्ष बने और लंबे समय तक वें अध्यक्ष बने रहे । स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद का अध्यक्ष पद छोड दिया और विश्व हिन्दू परिषद के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक के रूप में अजीवन मार्गदर्शन करते रहे ।
अशोक सिंघल के कारण देश में ‘रामजन्मभूमि’ एक ऐसा विषय बन गया जिसने केन्द्र सरकार तक को प्रभावित किया । विश्व हिन्दू परिषद द्वारा चलाये जा रहे हिन्दू समाज के जागरण का अभियान 25 सितम्बर, 1990 को और तीव्र हो गया क्योंकि इस दिन भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा लेकर निकले और जनता को श्रीराम मन्दिर जीर्णोद्धार का महत्व तथा छद्म पंथनिरपेक्षता का अर्थ समझाने लगे । जिसके कारण आडवाणी की रथयात्रा से कांग्रेस के वोट का गणित बुरी तरह बिगड गया । कालांतर में अयोध्या में घटित 30 अक्टूबर से 2 नवम्बर, 1990 की घटना का साक्षी रहे भानुप्रताप शुक्ल ने लिखा था कि इतिहास और हम साथ – साथ चल रहे थे । हम मौन थे किंतु इतिहास मुखर था । विश्व हिन्दू परिषद द्वारा घोषित कारसेवा को मुलायम सिंह यादव द्वारा नही करने देने की घोषणा से दुनिया भर के लोगों की निगाहें अयोध्या पर आ टिकी थी । 29 अक्टूबर की देर रात्रि तक अयोध्या में कोई हलचल नही थी । चारों तरफ मुलायम सिंह यादव की चौकसी की वाहवाही हो रही थी । 30 अक्टूबर की प्रात: 9 बजकर 10 मिनट पर मणिराम छवनी का सिंहद्वार खुला । अशोक सिंघल मात्र तीन – चार लोगों के साथ प्रसन्न मुद्रा में निकले । चारों तरफ सन्नाटा था । समय ने सांस रोक लिया और मानों कहने लगा कि हे राम ! क्या अकेले अशोक सिंघल ही कारसेवा करेगें कि अचानक एक साथ लाखों कारसेवक अयोध्या के घरों से निकल कर एक साथ प्रकट हो गए और रामजन्मभूमि की तरफ निकल पडे । प्रशासन के हाथ – पैर फूल गए और मुलायम सिंह की घोषणा ‘परिन्दा भी पर नही मार सकता’ धरी की धरी रह गई । इस प्रकार के प्रबन्धन कला में निपुण थे हिन्दुत्व पुरोधा अशोक सिंघल । रामजन्मभूमि पर भव्य मन्दिर देखने की ललक के चलते उन्होने प्रशासन की गोली सहन किया पर टस से मस न हुए और ‘राम काज करिबे को आतुर’ की अपनी धुन में लगे रहे । 2 नवम्बर 1990 को उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव द्वारा रामभक्तों पर गोलियाँ चलवाकर सैकडो रामभक्तों को मौत के घाट उतार दिया गया ।
4 अप्रैल 1991 को दिल्ली के बोट क्लब पर श्रीराम जन्मभूमि मुक्ति हेतु ऐतिहासिक जनसभा हुई । विश्व हिन्दू परिषद और श्रीराम कारसेवा समिति के तत्वाधान में दिल्ली के बोट क्लब पर हुए जनसमागम को इतिहास कभी नही भूल पायेगा । इस जनसमागम में जो भीड उमडी उसने भारत सहित दुनिया के विभिन्न देशों को आश्चर्यचकित कर दिया । देश भर के जनमानस को विश्व हिन्दू परिषद जगाता रहा । 6 दिसंबर 1992, के उस काल को कभी कोई नही भूल सकता । यही वही दिन था जिस दिन रामभक्तों ने अयोध्या में विवादित बाबरी ढांचे को गिरा दिया था । भानुप्रताप शुक्ल के साथ बैठे अशोक सिंघल ने एक साक्षात्कार में कहा था कि रामजन्मभूमि आन्दोलन छोटे स्तर पर भी खत्म हो सकता था परंतु इसका दायरा बढ्ता ही गया । जब लखनऊ तक यात्रा हो गई तबतक श्रीमती इन्दिरा गांधी का देहवासान हो गया और शासन में नयी सरकार आ गई थी । वर्ष 1986 में जब ताला खुला तब बाबू जी (उनके गुरूदेव) चले गये । फिर केन्द्र की और उत्तरप्रदेश की सरकार गिरी । संतो का कहना था कि या तो सरकार झुके या हटे । कालांतर में सरकार हट गई । हम नयी सरकार में राम – रथ निकाल रहे थे इसका भी निषेध हो सकता था । इसे दैवेच्छा ही कहेगें कि उसी समय शाहबानों प्रकरण भी पूरे देश में उठ गया । इसके कारण देश के मुसलमानों ने आन्दोलन करना शुरू कर दिया । प्रतिक्रियास्वरूप हिन्दू समाज भी जागृत हुआ । कांग्रेस में भी प्रतिक्रिया हुई । उसी समय ‘राम जानकी रथ’ भी निकल रहा था । कांग्रेसी भी चाहते थे कि मुसलमान आगे बढ रहें हैं तो रथ भी आगे बढे । वीर बहादुर के मन में प्रेरणा जगी कि ताला कैसे खुले ? और फिर उसे न्यायालय के आदेश से खुलवाया । इतने में कुंभ का समय आ गया । कुंभ में एक स्थान पर संत – शक्ति एकत्रित हुई । शिलान्यास की तिथि निश्चित की गई । शिलापूजन का कार्यक्रम बना । शिलान्यास पूर्व ही चुनाव घोषणा हो चुकी थी । शिलापूजन का कार्यक्रम का प्रभावचुनाव पर भी पडा और केन्द्र में सरकार बदल गई । उसी काल में टेलिविजन पर ‘रामायण’ और ‘महाभारत’ जैसे कार्यक्रम का प्रसारण किया जाने लगा और हमारे रथों का उत्तरप्रदेश व बिहार के आंचलों में घूमना, यह सब ‘दैवेच्छा’ ही थी । रामजन्मभूमि आन्दोलन में ‘रामायण’ सीरियल की बहुत बडी भूमिका है । इस सीरियल का प्रभाव नवयुवकों पर बहुत अधिक पडा और बहुत हद तक उसी में से बजरंग दल निकलकर आया । भारतीय राजनीति में पहली बार ऐसा हुआ कि कालांतर में भारतीय जनता पार्टी ने जिस उम्मीदवार को सपोर्ट किया वह जीत गया । बोफोर्स घोटला कोई मुद्दा नही था अपितु रामजन्मभूमि मुद्दा था । कालांतर में जिसका लाभ विश्वनाथ प्रताप सिंह को भी मिला । मंडल – कमंडल की राजनीति के कारण लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक जीत मिली । रामजन्मभूमि का छोटा – सा विषय आज राष्ट्र की पूरी राजनीति को परिवर्तन दे रहा है । अशोक सिंघल स्पष्ट रूप से मानते थे कि यदि राजीव गांधी की मृत्यु न हुई होती तो परिणाम और अच्छे हुए होते ।
यह सच है कि राममन्दिर पहले विश्व हिन्दू परिषद के एजेंडे में नही था । ऐसा कहा भी जाता है कि 1980 में जब अशोक सिंघल ने राममन्दिर की मांग को लेकर दिल्ली में अपनी पहली प्रेसवार्ता की तो विहिप का लेटर हेड भी उन्होंने उपयोग नही किया । दूसरे शब्दों में, राममन्दिर का विषय सीधे उनके हृदय से जुडा था । राममन्दिर का विषय सीधे उनके हृदय से जुडा होने के कारण उन्होंने कभी उसपर समझौता नही किया । यही कारण है कि अशोक सिंघल राजग – 1 के समय अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी के खिलाफ मोर्चा खोलने से भी पीछे नही हटे । यह बहुत कम लोग ही जानते होगें या यूँ कहें कि अशोक सिंघल के इस पहलू के बारें में बहुत कम ही लोगों को पता होगा कि उन्होने हिन्दू समाज में व्याप्त बुराईयों को खत्म करने का बीडा उठया । इसका पहला उदाहरण सार्वजनिक रूप से 1986 में अयोध्या में घटी हमें उस घटना से पता चलता है जब शिलापूजन के कार्यक्रम में कामेश्वर नामक दलित व्यक्ति से पहली ईंट रखवाया । देश के लगभग दो सौ से अधिक मन्दिरों के पुजारियों को दलित परिवार के बच्चों को बनाया । इसके लिए अशोक सिंघल ने बकायदा वेद पाठशालाएं खोली और वेद अध्य्यन के पश्चात उन बच्चों को दीक्षित करने कार्य स्वयं शंकराचार्य द्वारा किया जाता है । पूर्वोत्तर भारत समेत देश के दूसरे भागों में लाखों की संख्या में एकल विद्यालय खुलवाकर ईसाई मिशनरियों के षडयंत्र पर रोक लगा दिया ।
1996 में जब अमरनाथ यात्रा पर संकट आया तो अशोक सिंघल के आह्वान पर बजरंग दल ने अमरनाथ यात्रा को सुचारू रूप से चलाया । 2005 में जब बूढा अमरनाथ यात्रा पर आतंकवादियों के कारण संकट आया तो अशोक सिंघल के आहवान पर बजरंग दल ने पुन: इस यात्रा को सफलता पूर्वक चलाया । केन्द्र सरकार द्वारा रामसेतु को तोडने के मसौदे को ध्वस्त करने हेतु दिल्ली में अशोक सिंघल के नेतृत्व में विशाल रैली किया गया और इस रैली का प्रभाव यह हुआ कि केन्द्र सरकार को अपना निर्णय वापस लेना पडा । वर्ष 2013 में जब तत्त्कालीन गृहमंत्री सुशील कुमार शिन्दे ने ‘भगवा आतंकवाद’ कहकर संबोधन किया तो वह अशोक सिंघल ही थे जिन्होने सर्वप्रथम गृहमंत्री को ललकारा और कालांतर में उन्हें शब्द वापस लेने पर विवश होना पडा । अयोध्या में भव्य राममन्दिर निर्माण को लेकर 30 मई 2013 को अशोक सिंघल जी के नेतृत्व में एक प्रतिनिधि मंडल ने राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी से भेंट किया और उसने आग्रह किया कि वें मुस्लिम समुदाय को समझाएँ कि मुस्लिम समुदाय अपनी उस बात को मानें जिसमे उसने कहा था कि यदि वहां कोई मन्दिर होना सिद्ध होता है तो मुस्लिम समुदाय अपना दावा छोडकर शांतिपूर्वक मन्दिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करेगा । जनजागरण करने हेतु अशोक सिंघल ने अयोध्या में चौरासी कोसी परिक्रमा कार्यक्रम किया जिसमें उत्तरप्रदेश प्रशासन के अहंकार के चलते उन्होने अपनी गिरफ्तारी भी दिया । यह बहुत कम लोगों को मालूम होगा कि नरेन्द्र मोदी को भाजपा की तरफ से प्रधानमंत्री का उम्मेदवार बनाने को लेकर संघ और भाजपा में जब मतभेद हुआ तो अशोक सिंघल खुद आगे आए और फरवरी 2013 में इलाहाबाद के महाकुंभ में विश्व हिन्दू परिषद द्वारा आयोजित धर्मसंसद में नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीद्वार बनाने हेतु संतो का समर्थन कर दिया । यह पहला अवसर था कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघाचालक मोहनराव भागवत की उपस्थिति में संघ परिवार के किसी इतने बडे अधिकारी ने इस प्रकार की बात खुले मंच पर किया हो । उसके बाद तो अशोक सिंघल हर मंच पर नरेन्द्र मोदी के पक्ष में प्रचार करने लगे और उनमें दैवीय शक्ति का आशीर्वाद होने की बात कहने लगे । कालांतर में नरेन्द्र मोदी जब देश के प्रधानमंत्री बने तो उनके शपथ समारोह में अशोक सिंघल गए । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से भी उनकी यही आस थी सरदार पटेल द्वारा सोमनाथ मन्दिर निर्माण की तर्ज पर संसद से कानून बनवाकर राममन्दिर निर्माण के आडे आ रही वें सारी अडचन को दूर करेगें ।
आश्विन कृष्ण पंचमी संवत 1983 विक्रमी, 27 सितंबर 1926 ई. को माँ विद्यावती की कोख से जन्म लेने वाले अशोक सिंघल के पिता महावीर सिंह अलीगढ के बिजौली गाँव के थे । इस प्रकार एक जीवन, एक उद्देश्य को चरितार्थ करने वाले विश्व हिन्दू परिषद के 89 वर्षीय अशोक सिंघल का संपूर्ण जीवन अयोध्या में भगवान रामलला का भव्य मन्दिर देखने की अधूरी आस के साथ समाप्त हुआ । ऐसी दिव्य आत्मा को भावभीनी श्रद्धांजली ।