सार्थक
राजदीप सरदेसाई देश के बड़े पत्रकार हैं. हमेशा चर्चा में रहते हैं. कभी मेडिसन स्क्वायर में मोदी समर्थकों से झड़प के बाद तो कभी किसी और खबर की वजह से. फिलहाल अपनी नयी किताब (2014 The election that changed India) को लेकर चर्चा में है. चर्चा विमोचन की वजह से भी है कि मोदी आलोचक पत्रकार के ‘टैग’ के बावजूद राजदीप ने अपनी किताब का विमोचन अरुण जेटली से कराया जिन्हें मोदी का सबसे करीबी में से एक माना जाता है.
बहरहाल विमोचन के बाद चर्चा हुई और किताब को लेकर राजदीप की तारीफ़ भी हुई. किताब अच्छा कारोबार भी कर रही है और फ्लिपकार्ट ने इसे 2014 के बेस्ट बुक वाले केटेगरी में रखा है. यकीनन अपनी किताब की सफलता देखकर वे फूले नहीं समा रहे होंगे कि उनकी मेहनत सफल रही और किसी को भी होना चाहिए.
लेकिन अब अपने ही किताब पर राजदीप सरदेसाई कुछ ऐसे मोहित हो गए हैं कि उनका मोह ‘सेल्फ अब्सेस्ट’ (self obsessed)की श्रेणी में जा पहुँचा है.इसका नमूना उन्होंने आउटलुक अंग्रेजी के वार्षिकांक में दिया जो किताबों पर आधारित है.
आउटलुक की थीम थी कि ‘Books that can change your life’. राजदीप से ऐसी किताबों का नाम पूछा गया तो उन्होंने दो किताबों का नाम लिया जिसमें एक उनकी खुद की किताब है. हालांकि उन्होंने बड़ी होशियारी से इसे जोड़ा कि कैसे इस किताब से उनकी जिंदगी बदल गयी.
लेकिन उनका अपनी किताब के प्रति self obsessed तो झलक ही गया कि किसी भी तरह से उनको अपनी किताब का यहाँ जिक्र करना था. यानी प्रोमोशन का कोई मौका हाथ से जाने न पाए तभी तो हेडलाइंस के एक शो में मणिशंकर अय्यर ने उन्हें कह दिया था कि राजदीप यहाँ भी अपनी किताब मत बेचो.
वैसे अपनी रचना चाहे वो किताब की शक्ल में हो या फिर किसी और तरीके से किसे नहीं प्यार होता है. लेकिन अच्छा तो ये होता है कि आपके लिखे के बारे में दूसरे चर्चा करे,तारीफ़ करे और उसे ऐसी किताब बताये जो जिंदगी बदल दे. इतना अपनी किताब के प्रति स्व आशक्त होना ठीक नहीं राजदीप.