सुजीत ठमके
लोग टूट जाते हैं एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते बस्तियां जलाने में…
यह देश के मशहूर शायर बशीर बद्र कि पंक्तियां है। इस गजल को बशीर बद्र साहब ने आगरा में हुए सांप्रदायिक दंगों के वक्त लिखी थी। बशीर बद्र साहब तब आगरा में थे। दोनों संप्रदाय एक-दूसरे के खून के प्यासे थे। बद्र साहब ने अपने घर में एक हिंदू परिवार को पनाह दी थी। तब बशीर साहब ने बड़ी पीड़ा के साथ यह ग़ज़ल लिखी थी। इसकी पंक्तिया देश कि आबोहवा पर एकदम सटीक बैठती है। दंगे देश में किसी भी जाति के हो। मजहब के हो। विक्टिम होता है आम आदमी। देश के बंटवारे से अबतक देश की जनता ने कई सांप्रदायिक दंगे देखे। इन दंगों में किसी ने अपना बाप खोया है। किसी ने अपनी मां खोई है। किसी ने अपने दोस्त खोए हैं। हमेशा के लिए। और किसी मां-बाप ने अपना एकलौता परजान खोया है। हमेशा के लिए।
संडे को मैं अक्सर न्यूज़ चैनल देखने से परहेज करता हूं। दोपहर को लंच करते समय टीवी का स्विच ऑन किया। लोकल चैनल पर ‘परजानिया’ मूवी प्रसारित हो रही थी। जी हां। परजानिया मूवी ठीक सुना आपने। कई राज्यों में प्रतिबंधित मूवी। संवेदनशील मूवी। दिल को झकझोरकर रख देने वाली मूवी।
ठीक 25-30 मिनट बाद इस मूवी का प्रसारण बंद कर दिया गया और हाउसफुल-1 दिखाई गई। यह मूवी मैंने रिलीज होने के बाद देखी थी। मेरी कुछ यादें ताजा हुई। यह मूवी रिलीज हुई थी, तब अलग अलग न्यूज चैनलों ने अलग-अलग एंगल से कवरेज दिखाया था। वर्ष 2007 में निर्देशक राहुल ढोलकिया ने गुजरात दंगों पर आधारित फ़िल्म परजानिया बनाई थी। मूवी की कवरेज करने राजदीप अहमदाबाद गए थे। मैं केवल और केवल वरिष्ठ पत्रकार राजदीप सरदेसाई की संवेदनशीलता की बात कर रहा हूं। राजदीप के विवादों को हम थोड़ा दरकिनार करते हैं। कोई पत्रकार खबर कवर करते वक्त या लाइव देते वक्त अमूमन भावुक होता नहीं है। अगर होता है तो उस घटना का दर्द कितना बड़ा हो सकता है, इसकी कल्पना करना मुश्किल है। लाइव प्रसारण में जब कोई बड़ा पत्रकार भावुक होता है। आंखें नम होती हैं, तब दर्शकों की आंखें भी नम होती हैं। परजानिया कवर करते वक्त राजदीप गंभीर हुए थे। संवेदनशील हुए थे। लाइव कवर करते वक्त कद्दावर पत्रकार राजदीप सरदेसाई फफक-फफक कर रोते थे। परजानिया के मां-बाप कहते हैं कि राजदीप हम हाथ जोड़ते है। आपके पैर पड़ते हैं। हो सके तो मेरा एकलौता परजान लौटा दो। हमारा सब कुछ ले लो। हम पारसी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। परजान हमारा एकमात्र चिराग है। परजान के मां-बाप का आक्रोश राजदीप सह नहीं पाए और राजदीप भी लाइव कवरेज करते वक्त रो पड़े। राजदीप सरदेसाई इसलिए रोए थे, क्योकि वह केवल जनता को दिखा सकते थे। सत्ता, व्यवस्था के आगे बेबस थे।
रविवार को 25-30 मिनट की मूवी देखकर राजदीप सरदेसाई की कवरेज से जुड़ी कुछ यादें फिर ताजा हुई। पारसी परिवार से ताल्लुक रखने वाले 10 वर्ष के बालक परजान को दंगाई घर से लेकर गए। अभी तक उसका पता नहीं। यह जख्म केवल परजान के मां-बाप के नहीं हैं। ये जख्म ऐसे हजारों बेबस दोनों समुदायों के चिराग का है, जिन्होंने अपनी आंखों के सामने अपने बुझते हुए चिराग को देखा होगा।