मनीराम शर्मा
जिस भ्रष्ट राजनीति की लम्बी लम्बी बातें आदरणीय मोदीजी कर रहे हैं उसका आगाज दिल्ली के रामलीला मैदान में आप ने किया था और उसी मंच पर भारत के लगभग सभी राजनैतिक दल भाजपा सहित , यूपीए को छोड़कर , शामिल रहे हैं | मोदीजी एक अच्छे वक्ता और धुरंधर राजनेता हैं जिन्हें जोड़तोड़ की राजनीति का अच्छा ज्ञान है यह ओवैसी, शिव सेना और राकपा ने साबित कर भी दिया है | किन्तु जनता इन भाषणों को आखिर कितने समय तक सुनने का संयम रख पाएगी | मोदीजी अच्छे राजनेता हैं किन्तु बुरे प्रशासक हैं | टाटा स्टील के अध्यक्ष पद से रुसी मोदी को हटाकर जब इरानी को अध्यक्ष बनाया गया था तब उन्होंने कहा था कि इरानी अच्छा स्टील तो बनाना जानते हैं किन्तु अच्छे आदमी नहीं | मोदीजी का भी हाल कुछ ऐसा ही है | बेशक राजनैतिक समीकरणों के वे अच्छे ज्ञाता हैं किन्तु धरातल स्तर पर एक भी सुधार का कार्य उन्होंने नहीं किया है |
प्रधान मंत्री जी के संवाद कौशल की राजनीति के अन्त की अब शुरुआत है, अगर उनके पिछले इतिहास पर गौर की जाए तो उन्होंने आजतक जिस सीढ़ी के डंडे पर पैर रखकर ऊपर गये वहां पहुंचते ही सबसे पहला कार्य पिछली सीढ़ी को तोडने का करते हैं।गुजरात में विश्व हिंदू परिषद और गुजरात भाजपा, फिर राजनाथ पर पैर रखकर आडवाणी, जोशी, सुषमा, जेटली, फिर मीडिया, सोशल मीडिया सहयोगी पार्टियों पर पैर रखकर पी एम की कुर्सी पर पहुंचे, पहुंचते ही राजनाथ का हश्र, शिव सेना की गत, जुकरबर्ग से मुलाकात, और समाज में लगातार गिरता मीडिया का स्तर और उसपर से जनता का उठता विश्वास, टीवी 18 की खरीदारी आदि ये साबित करने के लिए काफी है कि ये शाहजहाँ जिन हाथों से ताजमहल बनवाते है उन्हें दूसरा ताजमहल बनाने लायक नहीं छोडते| 2019 तक टॉम एन जैरी की जगह बच्चे न्यूज चैनल देखने की जिद करने लगे तो कोई अचरज की बात नहीं होगी|
उनके विचारों में राजनीति की अप्रिय बू आती है जो जन संवाद की बजाय व्यक्तिगत संपर्क रखने और उसके माध्यम से अपना जनाधार या पंथ प्रसार पर बल देते हैं कि लोगों को काम करवाना हो तो पार्टी से संपर्क रखें, उसके सदस्य बने | वे पार्टी के ज्यादा और जनता के कम प्रतिनिधि हैं| नाम तो हिन्दुत्व का लेते हैं और हाथ अवैसी से मिलाते हैं जो कहते हैं कि 15 मिनट के लिए पुलिस हटा ली जाए तो 100 करोड़ हिन्दुओं को साफ़ कर देंगे | प्रचंड बहुमत मिलना भी इस बात का कोई निश्चायक प्रमाण नहीं है कि वह व्यक्ति जन प्रिय, संवेदनशील है तथा तानाशाह नहीं है | इस तथ्य का मूल्यांकन एक बार इंदिरा गांधी के चरित्र के परिपेक्ष्य में करके देखें| मोदीजी भी इंदिराजी का एक हिन्दू संस्करण हैं |
दवा की कीमतों और रेल भाड़े में वृद्धि तथा श्रम कानूनों में हाल के संशोधनों से आने वाले अच्छे दिनों को झलक मिलती है | जो व्यक्ति लिखे हुए आवेदन को पढ़कर कोई समुचित कार्यवाही नहीं कर सकता विश्वास नहीं होता की वह व्यक्तिगत मिलने पर कोई हल निकालेगा|