सैयद एस.तौहीद
पीके रिलीज हुई ..देखी आपने? हमारी मान्यताओ को लेकर एक एलियन किस हिसाब से सोंचेगा ? जवाब की तलाश में भटकना नहीं होगा क्योंकि पीके आ गई. पेशावर सरीखी घटनाओं के प्रकाश में पीके का किरदार एक तत्कालिक जरुरत का जवाब बन कर आया है. महाकरोड़ क्लब की हालिया फिल्मो की तुलना में आमिर की फ़िल्म आपको निराशा नहीं करेगी..हालांकि लिखे जाने तक वो भी इसी क्लब की बन जाएगी.. अजीबोगरीब एलियन वाली यह फ़िल्म इंसानों की दुनिया की बात कर रही.पीके केवल एक एलियन का दुस्साहस नहीं…कहीं न कहीं वो लोगों की दबी ज़बान का उभरना भी कही जाएगी. ईश्वर की सत्ता पर जिरह करने वाला पीके उससे पूरी तरह इंकार नहीं करता बल्कि उसे दो किस्म का तस्लीम कर रहा ..बनाने वाला एवं बनाया हुआ. यह एलियन बनाए हुए की खुदाई पर सवाल खड़ा कर रहा. इस किस्म की बातें ना जाने कब से दिल में रही लेकिन ज़बान पर रुकी रहीं. फिल्म बड़ी बात सीधे-सरल तरीके से कह रही कि हर समस्या के मूल में एक आडम्बर होता है. जहां कहीं भी दुनिया में वो होगा समस्या जन्म लेगी. एक जबरदस्त भाव से शुरू होने वाली यह कहानी में पीके के लिए दुनिया एक अनजान जगह भर.. उसकी आंखों में एक अजीबोगरीब लेकिन प्यारा सा मासुम बात नजर आ रही…धरती पर उसकी कहानी इसी अंदाज में शुरू.
कहानी का जबरदस्त आकर्षण पीके के सतरंगी लिबास से नजर नहीं हटती लेकिन कहना होगा कि बहुत सी संभावनाएं बाकी रह गयी.. धरती पर आए एलियन पीके का चमत्कारी लाकेट धरती पर उतरते ही चोरी हो गया. वापस जाने के लिये उसे वाही लाकेट को तलाशना है…वही वापसी की कुंजी. इसी तलाश में उसे मालूम लगा कि इस दुनिया में भगवान की सत्ता चल रही. वही सर्व शक्तिमान उसे उसका खोया लाकेट दिला सकता है. अब शुरु होती है उस भगवान की खोज इसके बाद फिल्म और खोज बीच पीके (आमिर खान) की मुलाकात पत्रकार जग्गू (अनुष्का शर्मा) से होती है। जग्गू बेल्जियम से इण्डिया अपने प्रेमी सरफराज ( सुशांत राजपूत ) की खातिर आई थी..संयोग ने पीके एवं जग्गू को मिला दिया था.चमत्कारी लाकेट को स्वामी जी से हासिल करने में मददगार बनी.दोनों किस तरह स्वामी जी (सौरभ शुक्ला) से उस लाकेट को हासिल करेंगे यही कहानी है.
डायलाग…. जग्गू पीके से पूछ रही कि तुम्हारे ग्रह पे लोग नंगे कैसे रहते हैं? अजीब नहीं लगता ? पीके बाहर देखता है। बालकनी के बाहर एक कौवा दिखाई देता है। पीके उसे देखकर कहता है कि वो देखो- उस कौए को देखकर अजीब लगता है ? कहानी उमेश मेहरा की हालिया ओ माई गॉड से जरुर मेल खा रही लेकिन ट्रीटमेंट अलग किस्म का दिख रहा…एकदम नया नहीं फिर भी ताजा..खासकर आमिर खान जोकि फ़िल्म की जान हैं. दिल से फ़िल्म बनाने वाले फिल्मकार राजकुमार हिरानी को मनोरंजन में भी संवेदनशील सिनेमा बनाने का फन मालुम है. दिल खोलकर हंसाने व संवेदना देने में पीछे नहीं हटते … इस तर्ज पर पीके देखना नाउम्मीद नहीं होने देती. आपने सोंचा था कि एक एलियन दुनिया को आइना दिखाएगा?
हिरानी ने पीके को उमेश मेहरा की फ़िल्म का वर्जन नहीं होने दिया ..क्योंकि आमिर जो साथ रहे. पीके के एलियन किरदार पर आमिर की मेहनत कमाल से कम नहीं . सरल से प्रतीत होती यह एलियन की यह भूमिका उस किस्म की सरल भी नहीं. जो अनुभव हुआ वो अलग था फिर भी नया जोड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता. काश हिरानी की यह फ़िल्म बहुत ज्यादा कहे बिना बहुत कहने वाली बन पाती. आजकल की फिल्मों के चलन में पीके बहुत नयी बात नहीं कहते हुए जरुरी बात कह रही…देखिए पीके अपनी भोजपुरी में क्या कह रहा..
भगवान आप का अलग-अलग मैनेजर लोग अलग-अलग बात बोलता है..कौनो बोलता है सोमवार को फास्ट करो तो कौनो मंगल को, कौनो बोलता है कि सूरज डूबने से पहले भोजन कर लो तो कौनो बोलता है सूरज डूबने के बाद भोजन करो..कौना बोलता है नंगे पैर मंदिर में जाओ तो कौनो बोलता है कि बूट पहन कर चर्च में जाओ। कौन सी बात सही है, कौन सी बात लगत। समझ नहीं आ रहा है। फ्रस्टेटिया गया हूं भगवान.. कनफुजिया गया हूं…
एक लाइन में पीके के बारे में कहा जाए तो पीके मासूम उलझनो में बंटते बिखरते समाज की चिंताएं हैं.
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