“आतंकियों” की निंदा क्यों नहीं करते पाकिस्तानी अभिनेता??टाइम्स में ऑफ इंडिया में प्रकाशित इंटरव्यू जिसे वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी शेयर करते हुए लिखते हैं –
“आतंकियों” की निंदा क्यों नहीं करते पाकिस्तानी अभिनेता?? … टाइम्स ऑफ़ इंडिया में Sandeep Adhwaryu का कार्टून।
इसपर आयी कुछ प्रतिक्रियाएं नीचे दी गयी है –
Devendra Surjan इस लठैत की जगह अर्णव होता तो बात बनती और TOI में छपता तो जिसका जूता उसी के सर वाली कहावत भी पूरी हो जाती .
शिरीष शिरीष करण जौहर की फ़िल्म को संवैधानिक रूप से प्रदर्शित न होने देना या फिर बैन करना संभव नहीं था , क्योंकि कोर्ट के सामने ऐसा तुगलकी फरमान बिना किसी आधार के नहीं टिकता ।।
इसलिए गुंडागर्दी के जरिए इसे रोकने की प्रक्रिया अपनायी गयी ।। संविधान जिस चीज की इजाजत नहीं देता है उसको बलपूर्वक मनवाया जाने की जिद है , बहुत असंवैधानिक है तो क्या हुआ ?? तानाशाही और होती क्या है ??
पुलिस चाहती तो मदद कर सकती थी पर संविधान की शपथ ले चुके मुख्यमंत्री ने ऐसा चाहा होता !! और मुख्यमंत्री ऐसा चाह लें यह क्यों जरुरी होना चाहिए !!
लोगों को क्यों छुट मिले की वे सोचें की फ़िल्म देखी जाए या नहीं … तानाशाही में जनता कौन सी फ़िल्म देखेगी यह हक जनता को कैसे दिया जा सकता है भला ??
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आश्चर्य नहीं है , बिलकुल भी… हम जानते हैं वर्षो पहले एक मुख्यमंत्री ने कैसे आमिर खान से रंजिश निभाते हुए इसी तरीके से उसकी फ़िल्म को अपने राज्य में प्रदर्शित न होने दिया था …. तब जिन लोगों को आश्चर्य हो चुका था उन्हें अब क्यों होना चाहिए ??
पर याद रखने की बात तो यह है की गुंडागर्दी किसी को झुकवा ले , पर मन के अंदर के विचारों की हत्या नहीं कर सकती , लोग चुप हैं पर आपसे सहमत नहीं हैं ।। अगर कोई सोचता है की वह जीत चुका है, तो यह छद्म ख्याल है ।।
जब हिंदुस्तान में महज एक सूबे के गुंडे की निंदा खुलेआम बड़ी से बड़ी शख्शियत नहीं कर सकता तो पाक सत्ता/सेना की छत्रछाया में पलते आतंकियों की खिलाफत करने की जुर्रत कौन करेगा ?
जब सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की सपरिवार रेल आरक्षित टिकट जबरदस्ती काटकर और उस टिकट की छवि पुरे मुम्बई के होर्डिंगों में लगवा दी थी एक सरफिरे ने और ऐलान कर दिया था की बच्चन को मुम्बई छोड़कर जाना होगा तो बच्चन साहब ने भी हाथ जोड़कर माफी मांगी थी ।।