दीपक शर्मा,एंकर व एडिटर (इन्वेस्टिगेशन),आजतक
मालिक ने अखबार के सम्पादक को नोटिस यानी जांच खत्म करवाने की ज़िम्मेदारी दी.
संपादक ने ये काम बिजनेस ब्यूरो चीफ को सौंपा.
ब्यूरो चीफ ने फाइनेंस सेक्रेटरी से जांच रुकवाने के सिफारिश की.
फाइनेंस सेक्रटरी ने ब्यूरो चीफ से कहा कि एक बार वित्त मंत्री से भी बात कर लें .बिना मंत्री के ED जांच नही रोकेगा .
वित्त मंत्री ने ब्यूरो चीफ को मिलने का वक़्त नही दिया.
आखिरकार अपने मालिक की एक जांच रुकवाने के लिए देश का एक बड़ा अखबार वित्त मंत्री के आगे बिछ गया.
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मित्रों ऐसे अखबार से आप क्या उम्मीद करते हैं ?
ऐसे अखबार के संपादक से आप क्या उम्मीद करते हैं ?
ऐसे अखबार के ब्यूरो चीफ से आप क्या उम्मीद करते हैं ?
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काश ऐसा अखबार देश में एक ही होता तो मै आपको इस अखबार का नाम ज़रूर बताता. पर हकीकत और भी हैरान करने वाली है ..
मित्रों, इसे पेशेवर मजबूरी कहें या चापलूसी की इंतिहा , हमारे बीच ऐसे कई पत्रकार हैं जो आज सरकार से लाईजनिंग को सफलता की सीढ़ी मान बैठें हैं. इसके संकेत और साक्ष्य आपको समय समय पर कई मीडिया पोर्टल पर पढ़ने को मिलते हैं.
आज सच यही है कि जो जितना बड़ा लाईजनर है ..मालिक की निगाह में उतना ही बड़ा पत्रकार है .
ये देश का दुर्भाग्य है कि जहाँ हर तीन ग्रेजुएट में से एक बेरोजगार है, जहाँ हर तीसरे नागरिक में एक BPL है और जहाँ पारदर्शिता का मानक पिछड़े देशों से भी ज्यादा गिरा हुआ है वहां इन्कलाब लाने वाले अखबार सच से समझौता कर बैठे हैं. @fb