हरेक न्यूज़ चैनल की अपनी कुछ संपादकीय नीतियां होती है और उनके दायरे में ही रहकर चैनल काम करता है. लेकिन कई बार कुछ ऐसी परिस्थितियाँ सामने आती है कि संपादकीय नीति से अलग हटकर काम करना पड़ता है. ऐसा ही फैसला आज न्यूज़ एक्सप्रेस ने उत्तरप्रदेश में दो बहनों के साथ हुए दुष्कर्म और हत्या मामले में लिया. चैनल ने फैसला किया कि वह चैनल पर दोनों बहनों के शव की तस्वीरों को प्रसारित करेगा. न्यूज़ एक्सप्रेस के एडिटर-इन-चीफ और सीईओ विनोद कापड़ी इस बाबत सोशल नेटवर्क साईट पर लिखते हैं :
विनोद कापड़ी, एडिटर-इन-चीफ,न्यूज़ एक्सप्रेस
न्यूज़ एक्सप्रेस (News Express) पर हमने पेड़ पर लटके दो बहनों के शव की तस्वीरों को दिखाने का फ़ैसला किया है अपनी सम्पादकीय नीति से हटकर । क्योंकि हमारा मानना है ऐसे घिनौनी सच को ढाक कर हम भी गुनाह कर रहे हैं । तस्वीरों को बिना धुँधला किए दिखाकर हम सो चुकी, मर चुकी आत्माओं को जगाना चाहते हैं और सवाल पूछना चाहते है ये कैसा लोकतंत्र है जहाँ गरीब़ ,दलित,अनपढ़ आम आदमी यूँ ही पेड़ पर लटक कर मरता रहेगा ? News Express के नवीन नवीन कुमार (Navin Kumar) की क़लम ने आज देश के बड़े बड़े हुक्मरानो , बड़े बड़े तमाशबीनो की आत्मा को हिला कर रख दिया है ..ऐसी स्क्रिप्ट (script) मैंने अपने जीवन में आज तक नहीं देखी है । अगर आप ना देख पाएँ हों तो आज रात 10 बजे फिर से .. एक एक शब्द आपको पेड़ पर लटकी उन बहनों से माँ फ़ी माँगने के लिए मजबूर कर देगा । देखिए और देश को जगाइए !!!
उधर न्यूज़ एक्सप्रेस के ‘नवीन कुमार’ अपने स्क्रिप्ट की बानगी पेश करते हुए कुछ यूँ लिखते हैं :
ऊंची जाति के बलात्कारियों ने सिपाहियों की शह पर सिर्फ दलित बच्चियों को ही पेड़ पर नहीं लटकाया था। हमारे लोकतंत्र की आत्मा को भी लटका दिया था। कानून को लटका दिया था। संविधान को लटका दिया था। एक नागरिक के तौर पर हमारी संवेदनशीलता को लटका दिया था और लटका दिया था हमारी सभ्यता के पाखंड को। सोच के मुर्दाघरों में पड़ी बदायूं की बेटियां पूछती हैं इस मुल्क की सियासत की बहरी दीवारों से साहब क्या वाकई ज़िंदा रहना हमारा भी हक था?
राजनीति ब्लैक एंड व्हाइट…..
जनसता के संपादक ‘ओम थानवी’ इस घटना और शवों की तस्वीरों को दिखाए जाने के मुद्दे पर लिखते हैं :
उत्तर प्रदेश कानून-व्यवस्था पर कलंक की निशानी बन गया है। दो बहनों की पेड़ से टंगी लाशों की तसवीर जिस किसी ने देखी होगी, बरसों न भूलेगा। हादसे के चंद घण्टों बाद टीवी पर अखिलेश यादव का चेहरा कानून-अपना-काम-करेगा जैसी सरोकार-शून्य प्रतिक्रिया देते वक्त इतना गैर-जिम्मेदाराना था कि उन पर शर्मिंदगी अनुभव होती थी। पहले पिता, अब पुत्रः बलात्कार-हत्या उन्हें जैसे हंसी-खेल लगते हों। उत्तर प्रदेश की खुदा जाने, यही हाल रहा तो मुलायम कुनबे के बुरे दिन यकीनन आने वाले हैं।
किसी ने पेड़ वाली तसवीर के प्रसार पर आपत्ति उठाई है। यह फिजूल की बहस है। मेरा मानना है, कभी-कभी तसवीरें संवेदना जगाने में ज्यादा कारगर साबित होती हैं।