कैसे चलाया ‘पूरी कहानी’ का चलन-
इस तस्वीर को देखिए। ये एक सबूत है कि यदि आप कुछ नया और क्रिएटिव करेंगे तो दुनिया उसका अनुसरण करेगी। वो तमाम लोग जो आज भी समझते है कि ऑनलाइन मीडिया या सोशल प्लेटफॉर्म उतने महत्वपूर्ण नहीं है या अभी भी मेनस्ट्रीम मीडिया जितनी ताकत नहीं रखते हैं, तो उन जैसे महानुभावों के लिए है ये तस्वीर।
दरअसल ‘पूरी कहानी’ का चलन कुछ साल पहले hindi.in.com ने शुरु किया था। मुझे josh18.com को hindi.in.com बनाने के बाद उसे वापस गूगल की दौड़ में शामिल करने का जिम्मा दिया गया। ज्वाइन करते ही बता दिया गया कि ना तो खर्चों की बात करना, ना नए लोगों की भरती की, ना एड कैम्पेन होगा, ना प्रमोशन, मतलब साफ था जो करना है वो हमें ही करना था। तो सबसे पहले अपनी टीम को कुछ नया करने के लिए उत्साहित किया। कैंटिन में चाय-पकौड़ों के बीच उनसे पूछा कि कौन क्या नया कर सकता है। सबको आजादी दी गई कि वो नया सोचे और बताएं, सब मिलकर तय करेंगे और अच्छा रहा तो लागू किया जाएगा। जरुरी नहीं कि एडिटर होेने के चलते मैं जो कहूं, मैं जो सोचूं, वह ब्रम्हवॉक्य। बस सारी टीम लग गई। सबकों उनकी पसंद के विषय दिए गए। सो काम की थकान की शिकायत किसी की नहीं रही।
मैं हमेशा अपनी टीम के साथ बैठना पसंद करता था, इसीलिए जो नया विचार आता वो सबके साथ साझा किया जाता। ज्वाइन करने के कुछ ही दिनों बाद कंटेट को लेकर हमारे प्रयोग काम आने लगे। अब मेरी चिंता थी स्पेशल स्टोरीज़ की। मैं कुछ ऐसा चाहता था जिसमे किसी बड़ी घटना या खबर की सारी बातों को आखिर में समाहित कर पाठकों के सामने परोसा जाय। लेकिन वो बोझिल ना हो। क्योंकि ऑनलाइन का दर्शक एक क्लिक में दूर चला जाता है। बस उसी समय सोचा, क्यों ना पूरी कहानी कहने का चलन शुरु करें। हर बड़ी खबर की पूरी कहानी। टीम के साथ बात साझा की। सबको विचार पसंद आया। और हमने पूरी कहानी कहना शुरु की। हमने सैकड़ों पूरी कहानियां बनाई। गूगल की ट्रेंडिंग लिस्ट में हमारी पूरी कहानी आने लगी। देश के दूसरे नामी-गिरामी न्यूज़ पोर्टल हमारी नकल करने लगे। और आखिरकार वो दिन भी आ गया जब देश के न्यूज़ चैनल हमारी पूरी कहानी पढ़कर अपने स्पेशल प्रोग्राम बनाने लगे। तभी तो लोग कहते है कि अब न्यूज़ चैनल वाले भी स्पेशल प्रोग्राम का आइडिया गूगल पर ढूंढते हैं। @fb