जब टेलीविजन स्क्रीन पर मीडिया के ही लोगों की कुंठा तैरने लग जाती हैः
जिस मीडिया इन्डस्ट्री के लोग चार दिन पहले आए अपने इन्टर्नस की रिलेशनशिप, ब्रेकअप, अफेयर में कुंठा की हद तक जाकर गहरी दिलचस्पी रखते हों, वो किसी नेता को लेकर अतिउत्साहित न हो, ऐसा संभव नहीं है.
न्यूज इन्डस्ट्री के भीतर खुलेपन के नाम पर जिन गलीच शब्दों में पारस्परिक संबंधों, प्रेम और स्त्री-पुरूष के बीच की दोस्ती की व्याख्या की जाती है, संदीप कुमार सीडी प्रकरण उसका बस एक नमूना भर है.
आप कुछ मत कीजिए. नोएडा फिल्म सिटी में किसी चाय-समोसे के ठिए के आगे एक-डेढ़ घंटे बिताएं. अपने ही चैनल की एंकर्स के बारे में, बॉस और इन्टर्न को लेकर किस अंदाज में गप्पबाजी होती है, आप सुनकर हिकारत से भर जाएंगे.
अब आप न्यूज चैनलों की स्क्रीन पर जो भाषा तैर रही है, वीओ से लेकर एंकर जिस अंदाज में ऐसी खबरों को पेश कर रहे होते हैं, कब ठिए की वो भाषा, न्यूजरूम की भाषा में तब्दील हो जाती है, आपको पता तक नहीं चलेगा. आपको ये भी महसूस नहीं होगा कि वो ऐसे मुद्दे को सामने लाकर एक बेहतर और संवेदनशील समाज बनाने की दिशा में काम कर रहे हैं.
मुझे इस सीडी प्रकरण को लेकर अपनी तरफ से कुछ भी नहीं कहना है..बस इतना जरूर जोड़ देना है कि ऐसी खबरें मीडिया इन्डस्ट्री के भीतर की उस सडांध को इतनी बर्बरता से उघाड़कर रख देती है कि आपको लगेगा कि खबर में चाहे जो भी शख्स शामिल हो, सांकेतिक तौर पर चरित्र हनन से लेकर उत्पीड़न का काम रूटीन का हिस्सा है.