मुद्दे से भटकाने के लिए पाकिस्तान एक अच्छा मुद्दा है. भारतीय चैनल जब – तब इसे पकड़कर उठक – बैठक शुरू कर देते हैं. ऐसा लगता है मानों परमाणु युद्ध हुआ ही समझिए. पाकिस्तान को तो समाचार चैनल ऐसे चेताते हैं कि वे खुद भारतीय सेना के सेनाध्यक्ष हैं और स्क्रीन पर ही पाकिस्तान को नेस्तनाबूद कर देंगे. कई वर्षों से न्यूज़ चैनल दर्शकों को भारत – पाक युद्ध के नाम पर ऐसे ही भड़का कर अपनी टीआरपी की खेती कर रहे हैं. भारत – पाक क्रिकेट के समय भी ऐसी ही शब्दावली का प्रयोग चैनलों द्वारा होता है. अब फिर से एक बार यही सिलसिला शुरू हो गया है. अचानक ही न्यूज़ चैनेलों के स्क्रीन पर भारत – पाकिस्तान के बीच युद्ध के बादल मंडराने लगे हैं. मीडिया मामलों के विशेषज्ञ विनीत कुमार की टिप्पणी :
चैनल युद्ध-युद्ध खतरा-खतरा चिल्ला रहे हैं लेकिन वो बता सकते हैं कि उनके ब्यूरो के कितने लोग हिन्दुस्तान-पाकिस्तान के बार्डर इलाके में हैं, कितने पाकिस्तान की अंदुरुनी हालत का जायजा लेने वहां हैं या वहां की वायर की सब्सक्रिप्शन ली हुई है या फिर सिर्फ रायटर,एपीटीएन के भरोसे हैं औऱ इधर कितने लोग महाकुभ मेले को कवर करने गए हैं ?
ऑडिएंस को गदहा समझते हैं क्या ये कि युद्ध की खबरें तो अखबार की कतरनों और यूट्यूब के खदानों में उतरकर,फुटेज निकालकर अंधाधुन चलाएं, अठन्नी खर्च न करें और कहें कि देश में युद्ध की संभावना है औऱ उधर लाखों रुपये आस्था के स्नान पर फूंक दें. उन्हें पता है कि हथियार का विज्ञापन तो कर नहीं सकते लेकिन गंडे-ताबीज,श्रीयंत्रम बेच सकते हैं तो उसकी कवरेज ग्राउंड रिपोर्टिंग की तर्ज पर करें.
यकीन मानिए, तालिबान सी जुड़ी खबरें दिखाते वक्त भी यही किया था, यूट्यूब की खानों से धुंआधार स्टोरी चला करते. क्या चैनल जिस अनुपात में युद्ध की खबरें दिखाता है, उस अनुपात में लागत की रिपोर्टिंग करने का माद्दा रखता है ?
देखिए, मीडिया के लिए पाकिस्तान हर हालत में एक युद्ध ही है. आप क्रिकेट को लेकर बनी पैकेज पर गौर करें, भाषा पर गौर करें. आग के गोले,धुएं,दहाडती पार्श्वध्वनि, रिपोर्टर और एंकर की ऐसी आवाज कि जैसे बस चले तो पाकिस्तान खिलाड़ियों को निगल जाएं.
माहौल ऐसा कि जैसे 11 भारतीय क्रिकेट खिलाड़ी ने लाहौर से लेकर कराची तक पर कब्जा कर लिया हो और वहां के प्रधानमंत्री उनके लिए खैनी चुनिआने का काम करेंगे. घुसकर मारो पाकिस्तान को जैसे हेडर होते हैं. युद्ध और क्रिकेट ही नहीं, वीणा मल्लिक भी आए तो भारत पर कब्जा हो जाता है.
यहां का मीडिया पाकिस्तान को किसी भी हाल में एक पड़ोसी देश की शक्ल में देखने के लिए तैयार नहीं है. वो अशोक प्रकाशन के इतिहास की कुंजी से आगे की समझ रखता ही नहीं..यही कारण है कि क्रिकेट,मनोरंजन,सिनेमा,संस्कृति सारे मामले में कब्जा,युद्ध, दे मारो, फाड़ डालो जैसे मुहावरे स्वाभाविक रुप से आते हैं.
अगर सालभर क्रिकेट मैच चले तो समझिए कि मीडिया के लिए सालोंभर भारत-पाकिस्तान युद्ध जारी है और अगर सचमुच राजनीतिक माहौल गड़बड़ाते हैं तो क्रिकेटरों के नाम काटकर वहां गृहमंत्री,सेना अध्यक्ष और प्रधानमंत्री के नाम डाल दिए जाते हैं.