आज के तमाम अखबारों में मुंबई की फोटो जर्नलिस्ट के इस बयान की साफ-साफ और विस्तार से चर्चा है जिसमे उसने कहा है कि रेप के बाद जिंदगी खत्म नहीं हो जाती, वो जल्द ही काम पर वापस लौटेगी.
इलाज की प्रक्रिया से गुजर रही इस युवा पत्रकार के साहस की कहानी ठीक वैसी नहीं है जैसा कि पीड़िता मानकर बलात्कार की शिकार हुई लड़की को मीडिया पेश करता आया है.
इस बयान के पहले उसने पुलिस से शिकायत करके जो साहस और एक नागरिक होने की जिम्मेदारी का परिचय दिया है, उसकी कहानी ऐसी दर्जनों घटनाओं से बिल्कुल जुदा है.
उसके बाद जिंदगी के प्रति यकीन को लेकर इतनी विकट परिस्थिति में भी ऐसा जीवट बयान…न्यूज चैनलों को इसके कुछ मायने समझ आते भी हैं या बिल्कुल सपाट है ?
इस पत्रकार के बयान से देश की न जाने उन कितनी लड़कियों/स्त्रियों के बीच आत्मसम्मान और जीवन के प्रति अनुराग का भाव पैदा हुआ होगा जो अपने साथ इस तरह की हुई घटना को लेकर मानसिक पीड़ा से गुजरती रहीं है.
फेसबुक पर से गुजरते हुए भी लगा कि उसके इस बयान से मीडिया द्वारा बना और घिस दी गई छवि से कितनी अलग एक लड़की की छवि बनती है. इस खुशी को साझा करते हुए स्वर्णकांता( Swarn Kanta) ने लिखा-
“आज सुबह सुबह अखबार की इस लाइन पर नजर पड़ते ही…मन सुकून से भर गया…जी ने चाहा उसका माथा चूम लूं…
“बलात्कार से जीवन खत्म नहीं हो जाता.” ये लाइन किसी समाज सेविका या कार्यकर्ता ने नहीं खुद पीड़िता ने बोला है…मुंबई गैंग रेप की शिकार पीड़िता ने…
शुक्र है, कुछ बदलाव तो आ रहे हैं.”
लेकिन इसी खबर को लेकर जब न्यूज 24 पर थोड़ी देर के लिए रुका तो देखा कि उसके रवैये में किसी भी तरह का फर्क नजर नहीं आया है.
आज से दो दिन पहले उसने जिस तरह से आसाराम बापू की शिकार हुई 15 साल की लड़की(आरोप के आधार पर) को दिखाने के लिए 16 दिसंबर की पुरानी स्टि्ल्स का इस्तेमाल किया जिससे वो लड़की निरीह,लाचार और बेबस नजर आती है, वही स्टिल्स मुंबई की इस फोटो पत्रकार के लिए भी इस्तेमाल किया.
सवाल फिर वही है जो 15 साल की लड़की को दिखाने-बताने के दौरान हमने उठाए थे कि अगर वो अपने साथ हुई इस घटना की एफआइआर दर्ज कराती है तो उसकी तस्वीर घुटने में सिर छिपाए, शर्म से गड़ जानेवाली क्यों होनी चाहिए ?
ठीक उसी तरह 22 साल की एक फोटो जर्नलिस्ट अगर अपने साथ हुई इस घटना की न केवल शिकायत दर्ज कराती है बल्कि अपनी जिंदगी के बेहद ही नाजुक मोड़ पर खड़ी होने पर भी जिंदगी के खत्म न हो जाने और वापस जल्द ही काम पर लौटने की बात करती है तो चैनल को ये अधिकार किसने दिया कि उसे वो उसी तरह शर्म से गड़ी, घुटने में सिर छुपाए,दिखाए.
एंकर को ये अधिकार किसने दिया कि वो इस वॉल के आगे खड़े होकर घटना को लेकर तथ्यात्मक बात करने के बजाय रायता फैलाए ?
यकीन कीजिए, ऐसे चैनल और मीडिया स्त्री मुक्ति और स्वतंत्रता के नाम पर चाहे जितनी पैकेज बना ले, इनकी जीन में सामंती और मर्दवादी सोच कूट-कूटकर भरे हैं जो कि बहुत साफ दिखाई देते हैं.
इनकी पूरी मानसिकता इस बात से अटी पड़ी है कि स्त्री हर हाल में लाचार और कमजोर होती है. कहीं ऐसा तो नहीं कि तमाम सकारात्मक बदलावों के बीच भी चैनल स्त्री को अपने इस साहसिक,जीवट रुप में देखने के लिए तैयार नहीं है ? कहीं ऐसा होने पर उसे अपनी दूकान बंद होती तो नजर नहीं आती ?
न्यूज 24 से कुछ नहीं तो एक बार तो पूछा ही जा सकता है कि जो लड़की समाज में होनेवाले तमाम संभावित भेदभाव,उपहास और यातना को नजरअंदाज करके फिर से जीने और काम पर लौटने की बात बिस्तर पर पड़े-पड़े कर रही है, उसकी यही छवि होगी कि शर्म और अपमान से, हथेलियों से आंख ढंक ले ?