शाहनवाज़ मल्लिक-
एनडीटीवी की पूजा मत करिए, बेमौत मारे जाएंगे. सरकार हमला करे तो एनडीटीवी के साथ खड़े हो जाएं, एनडीटीवी बौद्धिक बदमाशी करे तो इग्नोर करना ठीक बात नहीं है.
ज़ी न्यूज़, आजतक वग़ैरह के लिए विश्वसनीयता कोई सवाल या चिंता नहीं है. मगर एनडीटीवी का दावा है कि वहां इसका ख़ास ध्यान रखा जाता है.
विश्वसनीयता की चाशनी में जब झूठ परोसा जाता है तो ज़्यादा डैमेजिंग होता है. एनडीटीवी में चली सांप्रदायिक ख़बर अधिक विरोध की मांग करती है.
दिल्ली सीरियल ब्लास्ट में आरोपी अगर गुनहगार हैं तो छह महीने में ट्रायल ख़त्म करके फांसी दे दो. (मैं फांसी की सज़ा के ख़िलाफ़ हूं.)
मगर 11 साल तक इसे खींचना शर्मनाक है. एनडीटीवी बेगुनाहों के बरी हो जाने को पुलिस के लिए झटका मानता है. रिपोर्टर यह झूठ भी बोलता है कि बरी हुए लोगों के ख़िलाफ़ सीधे सबूत नहीं थे. हक़ीक़त ये है कि उनके ख़िलाफ़ किसी तरह के सबूत नहीं थे. स्पेशल सेल ने सबूत क्रिएट करने की कोशिश की लेकिन वकील ने पकड़ लिया.
बेगुनाही साबित होने के बाद पुलिस की मंशा और कार्यशैली पर सवाल उठाने की बजाय पीड़ितों को कटघरे में खड़ा करना शर्मनाक है. एनडीटीवी ने ऐसा किया है.
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