नयी दुनिया के क्लोन के रूप में नेशनल दुनिया तो आलोक मेहता ले आये, लेकिन एक अखबार के रूप में स्थापित करने में नाकाम रहे.
नेशनल दुनिया अखबार के रूप में झूठ का पुलिंदा हो गया है और ये झूठ वो डंके की चोट पर बोल रहा है. अपनी ही लिखी बातों को झूठला रहा है और झूठ की नयी इबारत लिख रहा है.
हाल ही में नेशनल दुनिया ने नितिन गडकरी मामले में झूठ बोलने के सारे रिकॉर्ड को ही ध्वस्त कर दिया. 22 जनवरी को नेशनल दुनिया ने पहले पेज पर खबर छापी कि ‘गडकरी का अध्यक्ष बनना तय’.
लेकिन गडकरी अध्यक्ष नहीं बने और राजनाथ का नाम सामने आ गया. अगले दिन यानी 23 जनवरी को नेशनल दुनिया ने एक बार फिर खबर छापी. अबकी खबर बदल चुकी थी.
गडकरी सीन से गायब थे और राजनाथ बीजेपी के नए नाथ बनने वाले थे. अब नेशनल दुनिया की जुबान बदल चुकी थी. उसके पिछले दावे की हवा निकल चुकी थी.
लेकिन फिर भी नेशनल दुनिया ये दावा करने से नहीं चूका कि, ,नेशनल दुनिया ने पहले ही लिखा था गडकरी को नहीं मिलेगा दूसरा कार्यकाल’.
अब इसे थेथरई नहीं तो और क्या कहा जाएगा? एक दिन की हेडलाइन को दूसरे दिन की हेडलाइन झूठलाती है. ऐसे अखबार और ऐसे संपादक की क्या विश्वसनीयता?