जावेद अख्तर ने एकदम ठीक कहा है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड मुसलमानों का सबसे बड़ा दुश्मन है.बोर्ड की दलीलें न सिर्फ एकदम बोदा हैं, बल्कि सामंतवादी किस्म की हैं. वे इतने अहमक हैं कि कोर्ट में जाकर ऐसा हलफनामा पेश कर सकते हैं मर्द निर्णय लेने में ज्यादा सक्षम है. मतलब महिला निर्णय नहीं ले सकती. अगर महिला पुरुष बराबर नहीं हो सकते तो इस आधार पर यह भी तर्क दिया जा सकता है कि इंसान और कठमुल्ला कभी बराबर नहीं हो सकते. या कठमुल्ले कभी इंसान नहीं हो सकते.
बोर्ड का कहना है कि किसी एक धर्म के अधिकार को लेकर कोर्ट फैसला नहीं दे सकता है. यह दिखाता है कि ऐसे संगठनों का जम्हूरियत, संविधान, कानून की दुहाई सिर्फ तब तक अच्छी लगती है, जब तक उनका अपने पक्ष में इस्तेमाल हो. बोर्ड ने जो सुप्रीम कोर्ट में जो तर्क दिए हैं वे न सिर्फ संविधान या लोकतंत्र की भावनाओं के विरुद्ध हैं, बल्कि वे मुसलमानों के बारे में लोगों की धारणाओं को विकृत करेंगे.
आपको जम्हूरियत तभी तक चाहिए जब तक मुसलमान सामंती मर्दों को फायदा पहुंच रहा हो. उनकी अपनी धार्मिक कुंठाओं के तुष्ट होने तक तो जम्हूरियत ठीक है, उसके आगे बर्दाश्त नहीं है. यह एक शातिराना चाहत है कि जहां मुसलमानों पर संकट हो वहां कोर्ट, संविधान, कानून, लोकतंत्र सब चाहिए, जहां अपना धार्मिक मर्दवाद पोषित होता हो, वहां कुछ भी बर्दाश्त नहीं है.
अगर कुरान और हदीस में कुछ भी बदला नहीं जा सकता तो उन किताबों में तो पर्सनल लॉ बोर्ड का भी कोई जिक्र नहीं है. फिर पर्सनल लॉ बोर्ड क्यों बना? उसे ही क्यों न भंग कर दिया जाए? पर्सलन लॉ बोर्ड जैसा संगठन आम मुसलमानों को न सिर्फ शर्मिंदा करता है, बल्कि मुस्लिम समाज की तमाम खूबसूरत बातों को अपनी कट्टरता के तले दफन कर देता है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड बजरंग दल का छोटा भाई है.
(टेलीविजन पत्रकार कृष्णकांत के एफबी वॉल से)