अभिरंजन कुमार
नरेंद्र मोदी मीडिया में कुछ न्यूज़-ट्रेडरों के होने की बात तो करते हैं, लेकिन ऐसा लगता है कि उनकी परिभाषा भी अरविंद केजरीवाल की ही तरह है। जो मीडिया-कर्मी उन्हें सूट करते हैं, वे लोकतंत्र के चिराग हैं (चाहे वे सचमुच न्यूज़-ट्रेडर ही क्यों न हों) और जो सूट नहीं करते, वे न्यूज़-ट्रेडर हैं (चाहे वे सचमुच ईमानदार मीडिया-कर्मी ही क्यों न हों)।
Anurag Tiwari
जो कुछ भी हो, आप ये तो मानेगे ना, कि सबसे गिरे स्तर की पत्रकारिता को हमारी पौध झेल रही है. मैं तो हताहत हूँ, कि पैसे के लिए रेड लाईट बन चुका है ये दायरा. अब ये भी तो बुरा नहीं लगेगा जब लोग कहने लगेंगे ” अरे वो कुछ नहीं कर सकता था इस लिए …..कुछ करना जरुरी है , कलम को बिकने नहीं देना है. इस देश का भरोसा बस कलम पे है ..ज्यादा क्या कहें!
Kuldeep K Bhardwaj
एक भोजपुरी की कहावत है ….मै सुंदरी पिया सुंदरी बाकि गाव के लोग बंदरा बंदरी ….ये मोदी केजरीवाल या किसी व्यक्तिविशेष के लिए तो सटीक है । पर दुःख इस बात का भी है की मिडिया में जो स्माल पोकेट्स बन रहे है या बन चुके है वो कही न कही मिडिया के अस्तित्व को ग्रहण लगा रहे है।
Chandrashekhar Kumar
मोदी जी ने तो ऐसा नही कहा? यही तो प्राब्लम है अधिकांश पत्रकार बयानोँ को तोड़ मरोडकर पेश करने मेँ अपना समय बर्बाद करते है, जनसरोकार के मुद्दे गौण रह जाते है! आप ही बताईएँ आज के दौर मेँ कौन ऐसा मीडिया हाऊस है जो मोदी का इंटरव्यू नही लेना चाहता होगा? सोच समझकर तर्को पर बात कीजिएँगा तो मैँ आपकी बातोँ को ज्यादा तरजीह दूँगा!
Vivek Kumar
नरेंद्र मोदी जी ने न्यूज़ ट्रेडर टर्मिनोलॉजी देकर बड़ा नेक काम किया है, मीडिया के लिए। नहीं तो पेड मीडिया के आरोपों से मीडिया पिछले कुछ महीनो से परेशान था, अब एक सेफ स्पेस भी मिल गया है, सच्चे पत्रकारों को और मीडिया भी दागदार होते – होते भी बच गया। नीरा राडिया के टेप कॉन्ट्रोवर्सी को लगता है बहुत जल्दी भुला दिया गया है। बरखा दत्त, वीर सांघवी, प्रभु चावला, शंकर अय्यर जैसे बड़े पत्रकारों के नाम उछले भी और जल्दी ही सब कुछ रफा दफा कर दिया गया।
(स्रोत-एफबी)