नदीम एस.अख्तर
बिहार में जीतन राम मा़ंझी को देखकर तरस आता है. कृतघ्नता राजनीति का मूलसूत्र है, ये मांझी ने अच्छे से साबित कर दिया.
साथ ही ये भी बता दिया कि उनकी राजनीतिक समझ वाकई हवाई है और वे वास्तव में सीएम पद के योग्य नहीं. पीएम नरेंद्र मोदी और एक्स सीएम नीतीश कुमार की नाक की लड़ाई में उन्होंने जिस तरह खुद को प्यादे की तरह इस्तेमाल होने दिया, वो शर्मनाक है. अगड़ी जातियों के मठ और वर्ण व्यवस्था के पैरोकार राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के राजनीतिक मुखौटे यानी बीजेपी में मांझी को अचानक से महादलित प्रेम दिखने लगा है. मांझी का -आत्मसम्मान- अचानक से जग गया है और -शूद्र व नारी, दोनों ताड़न के अधिकारी- में विश्वास करने वालों से अब उन्हें महादलित उत्थान यज्ञ की अपेक्षा हो गई है.
मांझी ने उस कहावत को फिर चरितार्थ किया कि जिस थाली में खाओ, उसी में छेद करो. गुमनामी में भटक रहे मांझी को जिस नीतीश ने राज्य की बागडोर सौंपी, वही नीतीश अब मांझी को सत्ता के भूखे दिखने लगे. हद है !!! संविधान की जानकारी रखने वाला हर शख्स ये जानता है कि विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद सीएम बनने का हक किसे हैं. उसके बाद भी यदि मांझी कहें कि सीएम मैं ही हूं और बहुमत साबित कर दूंगा, तो ये उनकी सत्ता की भूख और political immaturity के संकेत हैं
इस पूरे प्रकरण में पीएम मोदी ने एक बार फिर अपनी साख गंवाई. देश का पीएम होने के नाते उन्हें दलगत राजनीति में ज्यादा नहीं उलझना चाहिए था लेकिन जिस तरह कल यानी रविवार को पीएम ने अफरातफरी में मांझी से मुलाकात की, उससे पब्लिक में यही संदेश गया कि पीएम दिल्ली में बैठकर बिहार बीजेपी यूनिट की राजनीति चला रहे हैं. भई कुछ काम तो बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के लिए छोड़ दीजिए साहेब! उस पे तुर्रा ये कि मांझी पीएम से मिलने के बाद पीसी करें और फिर बहाना बनाएं कि ये सब तो नीति आयोग और बिहार के विकास के सिलसिले में हुई मीटिंग थी. और फिर पानी पी-पीकर नीतीश को गाली देने लगें.
अच्छा तो ये होता कि मांझी, सम्मानजनक रूप से इस्तीफा दे देते और नीतीश को अपनी लड़ाई आगे लड़ने देते. इससे उनकी गरिमा भी बनी रहती और राजनैतिक कैरियर पर भी ग्रहण नहीं लगता. मांझी ये भी नहीं समझे कि वो नीतीश की तरह Mass leader नहीं हैं, राजनीति में एक चेहरा भर हैं जिस पर कभी भी चादर ओढ़ाई जा सकती है.
खैर, मेरी राय में इस पूरे प्रकरण में नीतीश को कम और बीजेपी को ज्यादा नुकसान हुआ है. जिस तरह गणतंत्र दिवस परेड में किरण बेदी को न्यौतकर और केजरीवाल की अनदेखी करके उसे दिल्ली में नुकसान उठाना पड़ा है, उसी तरह माझी प्रकरण भी बिहार की राजनीति में बीजेपी को नुकसान पहुंचाएगा. नीतीश के प्रति जनता में सहानुभूति आई है और मांझी के प्रति गुस्सा !
और बीजेपी तथा पीएम मोदी के प्रति लोगों की क्या राय बनी है, वो बिहार के आगामी चुनाव में आपको दिख जाएगा. दिल्ली का गुस्सा दूर तलक जाएगा.
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