मोदी की दिल्ली रैली में वही डफली और वही वही राग:अखिलेश कुमार की आँखों देखी
अखिलेश कुमार
मोदी की तारीफों के बीच बीजेपी को आम आदमी पार्टी के बढ़ते जनाधार की चिंता
दिल्ली की राजनीति पर बोलने से परहेज करने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार अरविंद केजरीवाल पर जमकर निशाना साधा। दिल्ली विधान सभा चुनाव से ठीक पहले ऐतिहासिक रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिजली पानी को लेकर गोलबंदी की। 24 घंटे बिजली देने का वादा किया। 2022 तक सभी को घर मिलने जैसा सपना भी दिखाया। प्रधान मंत्री ने कांग्रेस पर कम आप पार्टी प्रमुख अरविंद केजरीवाल की धरने की राजनीति को कोसा। रैली में चुनाव की तैयारियों को लेकर पार्टी सभी बिंदुओं पर सतर्क दिख रही थी।
विजय कुमार मल्होत्रा अपने पुराने अंदाज में ही दिखे। विजय गोयल झुग्गी झोपड़ी वाले मुद्दे पर बार-बार जोर दे रहे थे। मीनाक्षी लेखी महज अपनी औपचारिकता पूरी कर रही थी,लेकिन सबसे चौंकाने वाली बात थी इस बार बीजेपी कांग्रेस से ज्यादा आप पार्टी के बढ़ते जनाधार से चिंतित दिख रही थी। इस पूरे एपीसोड में वही जुमले, वही राजनीतिक सरगर्मी कि केजरीवाल सत्ता को छोड़कर भाग गए। सभी नेता एक सुर में मोदी की तारीफ पर तारीफ करते नहीं थक रहे थे। इस बीच दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री साहिब सिंह वर्मा के बेटे और सांसद राम प्रवेश वर्मा ने अपनी पूरी बात में केजरीवाल पर कहानी कहने लगे। उनके वादों को झूठा करार देकर मोदी-मोदी की तारीफ करते नजर आए। बार-बार पिछले चार राज्यों में हुए पार्टी के प्रदर्शन को सभी नेता कहते नहीं थकते थे लेकिन जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक संकट पर बोलने से कतराते रहे।
मंच पर दिल्ली प्रदेश भाजपा के अलावा झारखंड के सीएम रघुवर दास, सतपाल महराज, हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस सहित और भी कई नेता उपस्थित थे। इन सभी नेताओं ने मोदी मंत्र को मंचों पर वीजा के रुप में उपयोग कर रहे थे लेकिन रामलीला के इस ऐतिहासिक मैदान में हजारों की संख्या में रैली के बहाने व्यवस्था से त्रस्त और असहाय लोग अभी भी अच्छे दिनों की आस में टकटकी लगाए दिखे।
मोदी की रैली को लेकर लोकसभा चुनाव वाला उत्साह नहीं,फोटो खिंचाने के बाद मिलता है खाना
सुरक्षा के कड़े इंतजामों के बीच रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली को लेकर लोगो में उतना उत्साह देखने को नहीं मिला जितना लोकसभा चुनाव से पहले युवाओं के जुबान पर बात-बात में मोदी-मोदी का जिक्र स्पष्ट रुप से दिखने को मिला था। रैली निर्धारित समय 11 बजे शुरु होनी थी लेकिन दिन के 12:30 तक लोग नदारद दिख रहे थे..कुर्सिया खाली दिखाई पड़ रही थी। इस बीच समाज का ऐसा तबका जिनका इन भाषणों से दूर-दूर तक कोई मतलब नहीं था, वो भी सामूहिक रुप से इर्द-गिर्द बैठकर भाषण को छोड़कर शीतलहर में खिली हुई धूप का आनंद ले रहे थे। इस कपकंपाती शीतलहर में नरेला से आए झुग्गीवासी अपने नन्हें मासुम बच्चों के साथ मोदी की रैली में अलग-थलग बैठकर अभी भी अच्छे दिनों की आस में टकटकी लगाए हुए थे। पूछने पर सूरज नाम के आदमी ने बताया कि हमलोगो को जिन्होंने लाया था..वो मिल नहीं रहे हैं। अभी तक खाना भी नहीं मिला है..सभी हमसे पूछने लगे कि फोटो खींचने के बाद हमें खाना मिलेगा। इसलिए बार-बार हमें फोटो खींचने के लिए आग्रह कर रहे थे।
अच्छे दिन, सुशासन और स्वच्छ भारत के मिशन, इन लोगो के लिए महज एक अबूझ पहेली के समान ही था। खानपुर से शीला के साथ किरण, दीपक के साथ छोटा बच्चा देबू भी था जो भीड़ में दुबककर बैठा था। शीला कहती है कि गाड़ी में ही होमलोगो को खाने का पैकेट मिल गया था 1:30 के बाद लोगो की भीड़ बढ़नी शुरु हो गई थी। खाली पड़े कुर्सियों पर सुरक्षकर्मी लोगो को बैठने की सलाह दे रहे थे। चप्पे-चप्पे पर सुरक्षाकर्मी तैनात थे। महिलाओं के लिए अलग से गैलरी बनाई गई थी।
मोदी-मोदी के नारे में खोयी मीडिया को नहीं दिखी खाली कुर्सियां
मीडियाकर्मियों के लिए इस बार बड़ा सा गैलरी था। महिलाओं की गैलरी में उपस्थित लोगों की संख्या से ज्यादा मीडियाकर्मी के गैलरी में बैठे पत्रकार बंधु थे। जब-जब कोई नेता आता महज कुछ लोग मीडियाकर्मी के सामने आकर मोदी-मोदी का नारा लगाने लगते…मीडिया कर्मी भी उन्हीं लोगो के विजुल्स को शॉट कर लाइव दिखा रही थे। जबकि ठीक इसके सामने खाली पड़ी कुर्सियों का एक भी विजुल्स पत्रकारों ने दिखाना उचित नहीं समझा। ध्यान रहे कि लोक सभा चुनाव से ठीक पहले जापानी पार्क में मोदी की रैली हुई थी जिसमें बूढ़े,बच्चे जवान, महिलाएं और युवाओं का झुंड वाकई उम्मीद और जोश के साथ मोदी पर तन मन से सहमति जताया था लेकिन ऐतिहासिक रामलीला के मैदान में मोदी उसी पुराने जुमलों और प्रकाश की किरण के जैसे सपने, अच्छे दिन और सुशासन की पुरानी कहानियां कह रहे थे, जिसका लोगों पर उतना प्रभाव नहीं दिख रहा था जितना पहले स्पष्ट रुप से लोगो के मानसिक पटल स्वत: दिखा था।
गौरतलब है कि अमुमन रैलियों में इस प्रकार की बातें आम हैं लेकिन भीड़ जुटाने के लिए लोगो को झूठी आस देकर मैदान को भड़कर नेता अपनी शक्ति का प्रदर्शन तो करते हैं लेकिन दुनिया के तथाकथित विशाल भारतीय लोकतंत्र में व्यवस्था से त्रस्त, हाशिए पर आए गरीब मजदूर लोग रैली में आते हैं…फिर लौट जाते हैं। शायद आना और फिर लौट जाना ही विशाल लोकतंत्र की नियति बन गई है।
(लेखक पत्रकार हैं)