क्या हमें बेहतर नागरिक बनने के लिए मीडिया का बेहतर ग्राहक बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए?

सुयश सुप्रभ

आज ‪जेएनयू‬ में मीडिया के संकट पर बोलते हुए द हिंदू के पूर्व संपादक सिद्धार्थ वरदराजन ने कहा कि अगर आप अख़बार पर पैसा नहीं ख़र्च करेंगे तो कोई और पैसा लगाएगा और वह कोई और कभी कॉरपोरेट जगत का बादशाह तो कभी कोई नेता हो सकता है।

वैकल्पिक पत्रकारिता के लिए वेबसाइट का कोई आर्थिक मॉडल भारत में अभी तक सामने नहीं आया है। हमें नागरिक के तौर पर यह सोचना होगा कि सही ख़बर का हमारे लिए क्या महत्व है।

मीडिया संस्थानों ने न्यूनतम समाचार और अधिकतम राय-विमर्श का रास्ता अपनाकर कम लागत में अधिकतम मुनाफ़ा कमाने का तरीका निकाला है।

प्रिंट मीडिया में घटना स्थल पर जाकर रिपोर्टिंग करने की परंपरा ख़त्म होती जा रही है। जहाँ यूरोप और अमेरिका में विज्ञापन और ग्राहकों द्वारा ख़रीद का अनुपात 40:60 या 50:50 रहता है वहीं भारत में यह 90:10 है।

क्या हमें बेहतर नागरिक बनने के लिए मीडिया का बेहतर ग्राहक बनने की कोशिश नहीं करनी चाहिए?

(स्रोत-एफबी)

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