-जितेन्द्र कुमार ज्योति
मीडिया के ईसाईकरण से देश की अखंडता खतरे में
देश को विभाजन करने का प्रयास इसाई मिशनरी के द्वारा अप्रत्यक्ष और प्रत्यक्ष दोनों तरीके से किया जा रहा है। इस चाल में विदेशी लोग के अलावा देशी लोग भी सक्रिय हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि हिन्दु में जयचंद कल भी था और आज भी है। हिन्दुस्थान को अगर सबसे ज्यादा सावधान रहने की जरूरत है तो वह है ईसाई मिशनरी से जो धन,संपदा और शिक्षा का झूठा सपना दिखाकर यहां हिन्दू नागरिकों का धर्मपरिवर्तन करवाने में लगी है। आजकल दलित,आदिवासी का बाजारीकरण करने में ये मिशनरी कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती है। हिन्दू समाज के इस अभिन्न अंग (दलित,आदिवासी )को ईसाई बनाने की प्रक्रिया स्वतंत्रता पूर्व से यथावत बदस्तूर जारी है। लेकिन इस कार्य के लिए अब मीडिया का भी सहारा लिया जा रहा है।
केंद्र में इटली प्रेम को आसानी से देखा जा सकता है और यह प्रेम किसके कारण है यह भी कहने की जरूरत नही। मीडिया के द्वारा ये लोग यहां के हिन्दू समाज को वैचारिक तौर पर बांट्ने का लगातार प्रयास करते हैं। इस खेल में काला धन का खुले आम सहारा लिया जा रहा है। यह काला धन भारत में आकर मीडिया के मार्फत सफेद धन बन जाता है। बाजार में बहुत से ऐसे पत्र -पत्रिकाएं हमें ,आपको दिख जाएगा जिसमें दलित आदिवासी और बहुजन को हिन्दु समाज और धर्म से अलग दिखाने की भरपूर कोशिश रहती है। मैंने इस सच्चाई को जानने के लिए एक ऐसे पत्रिका में बतौर पत्रकार का कार्य किया ताकि वास्तविकता को जाना जाए तो पूरा माजरा तीन महीने में समझ में आ गया कि पत्रिका या मीडिया तो एक बहाना है असल मकसद है इन ईसाईयों हिन्दू समाज के दलित आदिवासी युवा छात्रों में लेखन के द्वारा हिन्दू धर्म के प्रति वैमनस्यता भरी जाए ताकि धर्म परिवर्तन में किसी तरह का बाधा न हो।
कभी महिसासुर जैसे दानव को आदिवासीयों का पूजनीय बना देना तो तो कभी गौ माता के मांस खाने के लिए प्रेरित करना इन ईसाई समर्थित पत्रिका के द्वारा चार पांच पन्नों में छापा जाता है। ताकि आदिवासी समाज को हिन्दू धर्म के प्रति नफरत पैदा करवाया जा सके । लेकिन यह प्रयास इनका कभी सफल नहीं होने वाला हां,कुछेक जयचंद के कारण इन मिशनरियों का कुछ दिन तक दाल जरूर गलेगा इसमें भी दो राय नही ।
सवाल यह कि क्या वर्तमान केंद्र सरकार इस तरह के पत्र-पत्रिकाओं को आगे बढने देना चाहती है या इस तरह के मीडिया संगठन को खुलेआम लाइसेंस देकर देश का इटलीकरण अथवा ईसाईकरण करवाना चाहती है।
सवाल यह भी क्या किसी मीडिया को संविधान में यह अधिकार है कि वह किसी एक जाति को महिमामंडित तो करे वहीं दूसरे जाति या धर्म को गाली गलैाज दे नहीं यह अधिकार कतई नहीं है और होगा भी नहीं । वर्तमान में इस तरह के कार्य हो रहें है।
कुरूक्षेत्र में किसी कार्यक्रम में मैं गया था जिसमें जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने भारत को हिन्दुस्तान कहने पर संवैधानिक अपराध बताया तो कुछ ने हिन्दु देवी देवताओं का खुला उपहास उडा़या ये हिन्दू धर्म के ही थे और अपने को बुद्धिजीवी कहलाने के लिए यह सब बात कह रहे थे। और पत्र – पत्रिकाओं में अपना जगह बनाने की ताक में थे। मै इस बात को सबके सामने कह सकता हूं कि इस तरह के पत्र – पत्रिकाओं का देश से या देश की जनता से कोई लगाव नहीं है ये सिर्फ देश की मासूम जनता को कुछ प्रलोभन देकर दिगभ्रमित करना चाहती है और युवाओं को सच्चाई से दूरकर देश को तोड़ने की मंसूबा रखती है क्योंकि इस तरह के मीडिया संगठन के ’आकाओं’ को किसी और का वरदहस्त होता है और ये आका हिन्दुस्तान के उन लोगों पर हाथ डालती है जो प्रलोभन के वशीभूत मे होते है।
बहरहाल ,चंद गददारो को लेकर इस पवित्र भूमि को अब और तोड़ने का ख्वाब देने वाले को यह सोचना चाहिए कि चंदन है इस देश की माटी तपोभूमि अभिराम है हर बाला एक सीता है तो बच्चा- बच्चा राम है । और इन्हे यह भी जानने की जरूरत है कि अगर ये किसी जयचंद को लेकर पत्रकारिता के माध्यम से हिन्दूसमाज में बिखराव लाना चाह रहें हो तो इन्हे यह भी जानना होगा कि उस जयचंद के पीछे कोई न कोई शिवाजी प्रेरित पत्रकार जरुर ही खडा़ रहेगा जो जरूरत पड़ने पर जयचंद जैसे पत्रकार का खात्मा करने में देर नहीं लगाएगा।
(लेखक पत्रकार हैं और उनसे उनके मोबाइल नंबर 8860325838 के जरिये संपर्क किया जा सकता है।)