कहते हैं कि जीवन में अगर मसाला ना हो तो जीने का कुछ मजा नहीं आता। गुलाटी जी ने जिंदगी को खूब जिया और 98 साल की उम्र में सबकुछ छोड़कर दुनिया को अलविदा कह दिया। लेकिन बात जब भी मसालों को होगी लोग धर्मपाल गुलाटी जी को याद करेंगे। दरअसल हम जिंदगी जीते हुए जो भी अच्छा-बुरा करते हैं उसकी यादें ही रह जाती हैं। बाकी तो एक हद के बाद धन-दौलत मन का सुकून ही रह जाता है और खासकर उम्र के तीसरे पड़ाव में तो आप उसके उपभोग के काबिल भी नहीं रह जाते। आपकी गाढ़ी कमाई आपके बाल-बच्चों, आपके डॉक्टरों के बंगला-गाड़ी खरीदने और अस्पतालों की शानो-शौकत को बढ़ाने में ही काम आती है। मेरे कहने का मतलब ये नहीं है कि धन-दौलत का अर्जन कोई बुरी बात है। मैं तो बस ये कहना चाह रहा हूं कि एक हद के बाद धन-दौलत की लोच और लचक (Elasticity and Plasticity) दोनों ही बेकार हो जाती है।
अब बात फिर से एमडीएच के धर्मपाल गुलाटी जी की। बात शायद 2004-5 की है। तब मैं आजतक न्यूज चैनल में बतौर प्रोड्यूसर काम कर रहा था। उस दिन हमारी ड्यूटी रनडाउन पर थी। तभी मार्केटिंग के एक शख्स भागते हुए मेरे पास आए। बोले- ‘किसी मसाला कंपनी ने चैनल को बड़ी रकम का विज्ञापन दिया है। उसके मालिक को खुश करना है।‘ मैं हैरान था, ‘इसमें मैं क्या कर सकता हूं।‘ दरअसल धर्मपाल गुलाटी जी आजतक चैनल पर एंकरिंग करना चाहते थे। मैंने अपने बॉस सुप्रिय प्रसाद, जिन्हें में बड़े प्यार और दोस्ताना अंदाज में सुप्रिय सर कहता था, की ओर आश्चर्य मिश्रित भाव से देखा और मुझे समझते देर नहीं लगी कि अब हमें करना क्या है!
तब शायद 85 साल के धर्मपाल जी को लेकर मार्केटिंग वाले आ गए। हमारे सामने एक जवानी से लबरेज और उत्साह से भरा शख्स सामने था। गले में चमकती हुई मालाएं। सभी हीरे की ही रही होंगी। साथ में लाइट मारते चमकीले कपड़े। मैंने आधे घंटे के रिपीट प्रोग्राम के समय झट से उन्हें एकरिंग के लिए पास ही स्टूडियो ले गया और एंकर की कुर्सी पर बिठा दिया। मगर लो जी कर लो बात। उन्होंने झट से कहा, ‘वो चलाइए जिसे देखकर सब पढ़ते हैं।‘ उन्हें टेलीप्रॉम्पटर का नाम पता नहीं था। खैर, किसी तरह से मैंने उन्हें टीपी को ऊपर नीचे करना समझाया। वो काफी खुश नजर आ रहे थे। लेकिन उनसे भी ज्यादा खुश मार्केटिंग वाले नजर आ रहे थे। गुलाटी जी की आंखों में गजब की चमक थी। शरीर में फुर्ती और चेहरे पर ताजगी और रौनक। मानो अभी-अभी फेशियल करा के आए हों। मैंने उनसे जाकर कहा, ‘अब आप न्यूज पढ़ सकते हैं।‘ उन्होंने मेरी तरफ थोड़ी नाराजगी भरे लहजे में देखते हुए कहा, ‘वो आपकी एंकर कहां है? उसे भी मेरी बगल में बिठाइए।‘ शायद रितुल जोशी की ड्यूटी थी। किसी तरह उनकी एंकरिंग पूरी हुई। तब पता नहीं आजतक का कितना भला हुआ। मगर एंकरिंग के बाद वो चहकते हुए नजर आए। मेरी कुर्सी के पास आकर बड़ी विनम्रता से धन्यवाद कहा।
तबसे जब भी एमडीएच मसाला खरीदता हूं तो धर्मपालजी की ये कहानी बरबस याद आ जाती है। वैसे तो धर्मपाल गुलाटी जी के निधन की खबरें कई बार आईं और दो-तीन दफे तो अखबारों में छप भी गई, लेकिन वो इतनी आसानी से जाने वालों में नहीं थे। आज के अखबारों में उनके लिए प्रार्थना सभा और रस्म पगड़ी का विज्ञापन देखा तो सबकुछ आंखों के सामने कौंध गया। मानो कल की ही बात हो। गुलाटी जी अपने नाम से ना सही, लेकिन एमडीएच के नाम से आने वाले कई वर्षों तक याद किए जाएंगे। तबतक, जबतक कि कोई वॉलमार्ट, रियालंस या अडाणी उनके मसालों के ब्रांड पर कब्जा ना कर ले। विनम्र श्रद्धांजलि।
(वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार के फेसबुक वॉल से साभार)