– विनीत कुमार,मीडिया विश्लेषक
इंडिया टीवी जैसे हिन्दी चैनलों से लेकर अंग्रेजी के तमाम चैनलों में ये खबर प्रमुखता से दिखाई जा रही है कि ग्रेटर नोएडा की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल को इसलिए सस्पेंड किया गया कि वो पिछले कुछ दिनों से वहां के रेत माफिया के खिलाफ जबरदस्त काम कर रही थी. उसके इस काम से रेत माफिया को खासी परेशानी हो रही थी और अखिलेश यादव की सरकार पर लगातार दवाब बन रहा था. लेकिन ये बताइए कि दुर्गा के निलंबन के पहले आपने इन चैनलों के जरिए कितनी स्टोरी देखी-समझी जिनमे ये बताया गया कि ग्रेटर नोएडा जहां कुकुरमुत्ते की तरह टीवी चैनल उग आए हैं, रेत माफिया सक्रिय हैं. कितनी खबर में दुर्गा की ईमानदारी और इन माफिया के खिलाफ साहसिक कार्रवाइयों की चर्चा हुई ? आप इसे दुर्गा की ईमानदारी की सजा कह लीजिए, मैं इसे मीडिया की बेईमानी, मैनेज होकर काम करने और निकम्मेपन का नतीजा मानता हूं.
आप ग्रेटर नोएडा की एसडीएम दुर्गा शक्ति नागपाल के सस्पेंड किए जाने की घटना को उसकी ईमानदारी की सजा कह लीजिए लेकिन असल में ये उसी ग्रेटर नोएडा में कुकुरमुत्ते की तरह उग रहे मीडिया के मैनेज होकर काम करने, अखिलेश यादव सरकार के चंपू बनकर रहने का नतीजा है. मीडिया अगर दुर्गा की ईमानदारी का दस फीसद हिस्सा भी अपने में समेटकर काम कर रहा होता तो मजाल है कि अखिलेश यादव की सरकार उसे सस्पेंड कर देती ? उसके कदमों के आगे बिछी मीडिया ने दुर्गा को इस हालत में पहुंचाया है.
दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन की खबर के साथ “रेत माफिया का अखिलेश सरकार पर दवाब” जैसा पुछल्ला लगाकर खबरें प्रसारित करने से मीडिया को लग रहा है कि जैसे दर्शक-पाठक ये समझ ही नहीं रहे हैं कि उसने अब तक इससे जुड़ी खबरें प्रसारित नहीं की इसलिए दुर्गा जैसी ईमानदार अधिकारी के साथ ऐसा करने की जुर्रत अखिलेश यादव सरकार ने की. अखिलेश यादव क्या, देश की किसी भी राज्य सरकार को मीडिया से किसी भी स्तर पर न तो खौफ है, न संकोच और न ही पकड़े जाने का डर. नहीं तो जिस ग्रेटर नोएडा में दर्जनों नेशनल चैनल हों, वहां मजाल है कि रेत माफिया काम करते रहें और सरकार पर मीडिया का दवाब न बने. रेत तो छोड़िए, इस नोएडा में और भी बहुत कुछ होता है लेकिन सरकार के आगे लोटनेवाले मीडिया के बूते नहीं है उसे सामने लाना.
दुर्गा शक्ति नागपाल के निलंबन की खबर पिछले दस-बारह घंटे से लगातार चल रही है. कितने चैनलों ने अखिलेश यादव सरकार के आगे ये सवाल रखा कि इस तरह के कदम वो उठाती रही तो इसके संकेत बुरे होंगे. ऐसे तो मीडिया को पत्रकारिता छोड़ एनजीओगिरी करने में घंटाभर भी नहीं लगता,लेकिन अब ? वो ढोल पीटकर जिसे अखिलेश यादव की मनमानी बता रहा है, दरअसल वो कार्पोरेट मीडिया की दलाली का नतीजा है.
(एफबी से साभार)