‘‘लोकमत’’ की सच्चाई
सन 1971 में नागपुर से शुरूहुआ मराठी दैनिक लोकमत आज 13 स्थानों से प्रकाशित हो रहा है. मराठी के 13 संस्करणों के अलावा हिंदी दैनिक लोकमत समाचार सात स्थानों से तथा अंग्रेजी दैनिक लोकमत टाइम्स तीन स्थानों से प्रकाशित हो रहा है. कुल 23 संस्करणों के साथ लोकमत समूह ने आज समाचार पत्र उद्योग में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर लिया है. लोकमत की इस भारी प्रगति में निर्संदेह कर्मचारियों का अभूतपूर्व योगदान है.
बावजूद इसके, आज लोकमत के कर्मचारी शोषण के शिकार हैं. बरसों काम करने के बाद भी कर्मचारियों को गैरकानूनी ढंग से काँट्रैक्ट पर कार्यरत कर्मचारी दिखाया जा रहा है तथा उन्हें अत्यंत कम वेतन पर काम करने को मजबूर किया जा रहा है.
समाचार पत्र कर्मचारियों के लिए भारत सरकार द्वारा लागू किए गए पालेकर अवार्ड (1979), बछावत अवार्ड (1988) मणिसाना अवार्ड (1998) और हाल ही में लागू मजीठिया अवार्ड (2010) में निर्देशित वेतनमान और अन्य सुविधायों से लोकमत के कर्मचारियों को वंचित रखा जा रहा है.
समाचार पत्र उद्योग को लागू उपरोक्त वेतनमान कर्मचारियों को देना नहीं पड़े इसलिए लोकमत समूह द्वारा कर्मचारियों को कभी ‘‘गोल्डी एडव्हरटाइजिंग’’ तो कभी ‘‘ मानव सेवा ट्रस्ट ’’ तो कभी ‘‘ सरिता ’’ का कर्मचारी बताकर उनका शोषण किया जा रहा है.
मुनाफे के आधार पर कर्मचारियों को अधिक वेतन देने की अवार्डस में व्यवस्था होने के बावजूद लोकमत कर्मचारियों को कम वेतन देकर उनका भारी शोषण कर रहा है. इतना ही नहीं औद्योगिक न्यायालय तथा हाइकोर्ट का आदेश होने के बावजूद लोकमत ने आज तक कोर्ट में अपनी बैलेंसशीट फाइल नहीं की है. ताकि उसे कर्मचारीयों को ज्यादा वेतन न देना पडे.
लोकमत के उपरोक्तऔर अन्य अन्यायपूर्ण और कामगार विरोधी कृत्यों के खिलाफ कर्मचारियों का मान्यता प्राप्त संगठन ‘‘लोकमत श्रमिक संघठना’’ पिछले 16-17 वर्षों से लड़ रहा है. और यूनियन को तोड़ने के लिए लोकमत प्रबंधन अनेक साजिशें कर रहा है.
कमोबेश ऐसी ही स्थिति लोकमत के सभी संस्करणों में कार्यरत सभी कर्मचारियों की है. अतर् उनकी मांग के कारण अकोला में 15 अगस्त 2013 को तथा गोवा में 1 सितंबर 2013 को लोकमत श्रमिक संघटना की शाखाएं स्थापित की गईं.
संगठन के इस कदम से चिढ़कर लोकमत प्रबंधन ने गोवा शाखा के अध्यक्ष श्री मनोज राजेश इन्मुलवार को 12.11.13 को नौकरी से बर्खास्त कर दिया. इस कारण लोकमत के सभी शाखाओं के कर्मचारियों में तीव्र असंतोष निर्माण हो गया. उपरोक्त कारणों से संघटना को शांतिपूर्ण आंदोलन चलाना पड़ा. इसके खिलाफ, लोकमत प्रबंधन ने अपनी मनमानी करते हुए नागपुर के 36, अकोला के 21 तथा गोवा कार्यालय के 4, इस प्रकार कुल 61 कर्मचारियों को तुरंत प्रभाव से डिसमिस कर दिया है.
दर्डा परिवार का एक भाई-श्री राजेंद्र दर्डा महाराष्ट्र शासन में मंत्री हैं तथा बड़े भाई श्री विजय दर्डा राज्यसभा के सदस्य हैं. संवैधानिक पदों पर रहने के बावजूद ये लोग खुल्लमखुला श्रम कानूनों का उल्लंघन कर कर्मचारियों को प्रताड़ित कर रहे हैं क्योंकि उनके हाथ में सत्ता, अखबार और अथाह पैसा है.
आज अखबारों से सभी भयभीत हैं. राजनेता डरते हैं कि उनसे पंगा लेने पर उनके खिलाफ समाचार प्रकाशित कर उनकी बदनामी कर दी जाएगी. इन्हीं कारणों से प्रशासन भी अखबारों के खिलाफ कारवाई से बचना चाहता है. अखबार जनहित का प्रहरी बनने की बजाय निहित स्वार्थों के बढ़ावे का तथा उनके रखवालों का माध्यम बन गया है. यह दुर्खद है.
आम जनता से तथा आप जैसे प्रबुध्द नागरिकों से हमारी प्रार्थना है कि आप दर्डा परिवार को इन अन्यायपूर्ण मार्ग पर चलने से रोकें और उन्हें न्याय, सत्य के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करें जिससे लोकमत जैसा अखबार जनता के कल्याण का माध्यम बन सके.
लोकमत श्रमिक संघटना नागपूर. – email- lss.ngp5@gmail.com