कन्हैया कुमार जिस कम्युनिस्ट पार्टी के हैं, और जिसकी विचारधारा पर चलकर वे “पूंजीवाद, संघवाद और ब्राह्मणवाद से आजादी” मांग रहे हैं. उसने पश्चिम बंगाल में लगातार 33 साल तक शासन किया.
अगर उस पार्टी के पास दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, मुसलमानों के विकास का कोई मॉडल होता, तो वह लागू कर चुकी होती. 33 साल कम नहीं होते. उनकी सारी सरकारें बहुमत से आई थीं.
पश्चिम बंगाल का पूरा पब्लिक स्पेस, तमाम संस्थाएं चटर्जी, बनर्जी, भट्टाचार्य, दत्ता, बोस, सेन से क्यों भरा पड़ा है? मुसलमानों की नौकरी और मुसलमानों के बैंक लोन का सबसे बुरा प्रतिशत बंगाल में क्यों हैं? वहां कोई दलित साहित्य आंदोलन क्यों नहीं पनप पाया? ओबीसी आरक्षण देश में सबसे आखिर में पश्चिम बंगाल में क्यों लागू हुआ? वह भी पहली बार सिर्फ 5%?
आपकी पॉलिटिक्स क्या है पार्टनर?
-दिलीप मंडल,वरिष्ठ पत्रकार –