पत्रकारिता सिर्फ स्टिंग ऑपरेशन नहीं, पत्रकारिता तप है…

दीपक शर्मा

15 को 20 करना गलत है पर 20 को 10 करना गुनाह

पत्रकारिता में किसी खबर को सबसे पहले ब्रेक करना पत्रकार को गतिशील बनाता है. खबर की गहराई में उतरना पत्रकार को गणमान्य बनाता है. लेकिन खबर को काटना/छांटना/बदाना/फैलाना पत्रकार को गर्त में ले जाता है. पैसे ना भी लिया हो पर पत्रकार ऐसा करके अपनी साख किस्तों में डूबोता चला जाता है.
दरअसल किस खबर की क्या अहमियत है इसे आंकना और तौलना और उसे अखबार या चैनल में उतनी जगह देना ही समाचार संपादन है…लेकिन इस इंडस्ट्री मै ऐसे लोग अब बहुत कम बचे है.

अगर मोदी किसी संपादक को किसी कारण पसंद नही तो ये संपादक की अपनी व्यक्तिगत राय है पर वो इस राय के चलते अगर मोदी की खबर छाँटते है तो वो संपादक पाठकों की नज़र में कामरेड बन जायेंगे. आम राय उन्हें तटस्थ नही मानेगी.

अगर केजरीवाल किसी संपादक को अराजक लग रहे हैं और वो संपादक इस सोच के चलते केजरीवाल की खबर को 4 कालम से 2 कालम कर रहा है तो वो संपादक पढ़ने वालों की नज़र में संघी कहलाएगा.

अगर राहुल गाँधी की जगह कोई और ले रहा है तो हमे ये भूलना नही चाहिए की वो दस साल से देश का सबसे बड़ा चुनाव दो बार जीतकर आये हैं ..उनकी अहमियत है भले ही राय कुछ और बन रही हो.

मित्रों पत्रकारिता संतुलन का खेल है और साख इसका ब्रांड है. जरा भी संतुलन खोया की साख बिखरने लगी.

पत्रकारिता सिर्फ स्टिंग आपरेशन नही …पत्रकारिता सिर्फ रात की एंकरिंग नही …पत्रकारिता एडिटर शिप नही ….पत्रकारिता तप है…..संतुलन का तप.

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