रमेश यादव
जब हम लोग अख़बार में दाख़िल हुए थे,उस समय पत्रकारिता में किसी के नाम के आगे ‘जी’ लगाने का रियाज़ नहीं शुरू हुआ था,लेकिन निकलते-निकलते यह परिपाटी शुरू हो गयी थी ।
जैसे महान बंदूकबाज माननीय ढपोर शंख जी महाराज ।
अमरीकी मीडिया बराक अोबामा को ‘President Obama’ लिखता है ।
हमारे यहाँ पहले ‘महामहिम राष्ट्रपति ‘ लिखने की परिपाटी थी,अब ‘जी’ भी लगाये जाने लगा है ।
इसके साथ ही श्री श्री 108 अौर 1008 लिखने की ज़बरदस्त प्रतिस्पर्धा थी ।
अभी देखेंगे कि विश्वनाथ प्रताप सिंह के नाम के अागे-पीछे कुछ नहीं लगाया जाता, लेकिन अटल बिहारी बाजपेयी को ‘माननीय’ अौर ‘जी’ का संबोधन होता है । कहीं -कहीं दोनों अौर कहीं-कहीं एक लगाया जाता है ।
आज मायावती ‘बहन’ हैं,क्योंकि कार्यकर्ता उन्हें इसी नाम से पुकारते हैं,इसलिये कहीं -कहीं मीडिया में लिखा जाता है ।
आज़म हैं खां,मुलायम सिंह यादव हैं,राजनाथ सिंह हैं,लेकिन मोदी ‘जी’ ।
अौर भी बहुतेरे उदाहरण मौजूद हैं ।
परम पूज्य,पूज्य पाद,परम पूज्यनीय शब्दों का प्रयोग प्रचलन में रहा है ।
हाँ कुछ अख़बार अौर पत्रिकाएँ हैं,जो इससे परहेज़ करती हैं।
(स्रोत-एफबी)