विमल वरुण
मुझे भी आज हिंदी बोलने का शौक हुआ, चूँकि तीन दिवसीय लखनऊ दौरे पर आया हूँ तो, रेलवे स्टेशन से निकला और एक ऑटो वाले से पूछा,
“त्री चक्रीय चालक पूरे लखनऊ शहर के परिभ्रमण में कितनी मुद्रायें व्यय होंगी”? ऑटो वाले ने कहा, “अबे हिंदी में बोल ना”
मैंने कहा, “श्रीमान मै हिंदी में ही वार्तालाप कर रहा हूँ।
” ऑटो वाले ने कहा, “मोदी जी पागल करके ही मानेंगे।”
चलो बैठो कहाँ चलोगे? मैंने कहा,” मुख्यमंत्री के विशेष सचिव के दफ्तर ।” ऑटो वाला फिर चकराया!
“अब ये मुख्यमंत्री के विशेष सचिव के दफ्तर क्या है? बगल वाले श्रीमान ने कहा, “अरे C.M Secretary Office हाउस जाएँगे।”
ऑटो वाले ने सर खुजाया बोला, “बैठिये प्रभु ॥
” रास्ते में मैंने पूछा , “इस नगर में कितने छवि गृह हैं??” ऑटो वाले ने कहा, “छवि गृह मतलब??”
मैंने कहा, “चलचित्र मंदिर।”
उसने कहा, “यहाँ बहुत मंदिर हैं राम मंदिर, हनुमान मंदिर, जगरनाथ मंदिर,शिव मंदिर ॥
” मैंने कहा, “मै तो चलचित्र मंदिर की बात कर रहा हूँ जिसमें नायक तथा नायिका प्रेमालाप करते हैं॥
” ऑटो वाला फिर चकराया, “ये चलचित्र मंदिर क्या होता है??”
यही सोचते सोचते उसने सामने वाली गाडी में टक्कर मार दी। ऑटो का अगला चक्का टेढ़ा हो गया। मैंने कहा, “त्री चक्रीय चालक तुम्हारा अग्र चक्र तो वक्र हो गया।” ऑटो वाले ने मुझे घूर कर देखा और कहा, “उतर जल्दी उतर! चल भाग यहाँ से।” तब से यही सोच रहा हूँ अब और हिंदी बोलूं या नहीं?
विमल वरुण – सलाहकार
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