पिछले तीन बार से ये हो रहा है ‘हंस’ की सालाना गोष्ठी में घोषित वक्ताओं में से एक दो अचानक नदारद हो जाते हैं, पिछले साल इस गोष्ठी का उनवान था ‘दीन की बेटियां’ जिसमे पाकिस्तान से दो लेखिकाएँ किश्वर नाहीद और ज़ाहिदा हिना आई थीं. मुझे याद है की IIC के अपने कमरे में ही दोनों ने मुझसे कहा था की अगर तसलीमा नसरीन आ रही है तो मैं प्रोग्राम में नहीं आउंगी, हम उनके साथ मंच शेयर नहीं कर सकते। दरअसल दिल्ली के कुछ उर्दू अख़बारों ने ये खबर एक दिन पहले छापी थी की तसलीमा नसरीन को भी वक्ता के तौर पर बुलाया गया है ‘दीन की बेटियां’ कार्यक्रम में . जबकि ऐसा नहीं था, उन्हें मेहमान और स्तम्भ लेखक के तौर पर बुलाया गया था न की वक्ता के तौर पर.
उससे पहले भी छत्तीसगढ़ के बदनाम ‘डी आई जी’ का नाम चर्चा में था इसलिए सहमती देने के बावजूद अरुंधती रॉय नहीं आईं , और आज तीसरी बार भी यही हुआ की अरुंधती रॉय और वर वर राव नहीं आये, क्यूंकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के गोविन्दाचार्य को भी वक्त के तौर पर बुलाया गया था . वर वर राव हवाई जहाज़ से उतरे और रस्ते से ही दिल्ली विश्व विद्यालय के किसी प्रोफेसर के घर रह गए और फ़ोन भी बंद कर दिया . अब सवाल ये है की जो कार्यक्रम एक महीना पहले से छाप कर प्रचारित किया जा रहा था उसके प्रवक्ता अयनमौके पर क्यूँ तय करते हैं की नहीं आएँगे, पहले ही बता दिया करें .
(शीबा असलम फहमी के फेसबुक वॉल से )