आशीष कुमार ‘अंशु’
प्रेमचंद जयंती पर हंस के 28वें वार्षिक आयोजन में वक्ता के रूप में अरुंधती रॉय का नाम भी था. लेकिन वे नहीं आयी. दिल्ली में रहने के बावजूद क्यों नहीं, इसका कारण कोई भी नहीं जानता. लेकिन आयोजन शुरू होने के पहले ही सबको पता था कि अरुंधती रॉय नहीं आने वाली हैं. बहरहाल इसी मुद्दे पर पत्रकार आशीष कुमार ‘अंशु’ की एक टिप्पणी जो यदि सही है तो वाकई में बड़े शर्म की बात है.
आशीष कुमार ‘अंशु’ :
अपडेट 1 : प्रेमचंद के नाम पर इससे बड़ी बेशर्मी क्या हो सकती है?
आज हिमांशु भाई ने अरूंधति से बात की, क्या आप शाम को आ रहीं हैं?
अरूंधति ने पूछा कहां?
हंस के आयोजन में।
उसके बाद अरूंधति ने जो कहा, वह वास्तव में चौकाने वाला था।,
अरूंधति ने साफ शब्दों मंे कहा कि उसे पता ही नहीं है, इस कार्यक्रम के संबंध में।
अब इसका जवाब हंस को देना चाहिए कि जिस कार्यक्रम में आने के लिए अरूंधति के नाम पर लोगों को ‘न्योता’ जा रहा था, उस कार्यक्रम की अरूंधति को ही जानकारी नहीं। यह गड़बड़ीं हंस की तरफ से कैसे हुई?
जहां तक वरवर राव की बात है तो वे दिल्ली में ही नहीं है। मुझे संदेह है कि उन्हें इस कार्यक्रम की जानकारी दी गई थी या नहीं। दी भी गई थी तो यह बताया गया था या नहीं कि कार्यक्रम में गोविन्दाचार्य भी मौजूद रहेंगे।
राजेन्द्र यादवजी यह क्या गड़बड़झाला है?
अपडेट 2 :आज के हंस के कार्यक्रम में राजेन्द्र यादव ने कहा कि वरवर राव दिल्ली विश्वविद्यालय में हैं और आ रहे हैं। अब जिनके पास वरवर राव का नंबर हो, उनसे फोन करके जरा पता करें कि वे आज दिल्ली आए भी थे या नहीं?
अपडेट 3 : आज ‘हंस’ के आयोजन का गुड़-गुड़ हो गया, जैसा पहले ही लिखा था, बहन अरुंधति नहीं आएंगी सो वह नहीं आई। वरवर राव भी नहीं आए। अकेले ‘नक्सल’ (जैसे विषय) को गोविन्दाचार्य कितना संभालते। पांच मिनट में उन्होंने सब समेट लिया। फिर अरूंधति-वरवर को सुनने आई जनता को अशोकजी वाजपेयी, शीबाजी फहमी और रमणिकाजी कितना रोक पाते?
कार्यक्रम के पहले आशीष कुमार ‘अंशु’ द्वारा की गयी टिप्पणी :
हंस का 28वां प्रेमचंद उत्सव ऐतिहासिक होगा। इसलिए नहीं क्योंकि हंस के मंच से गोविन्दाचार्यं का भाषण होगा। गोविन्दाचार्य और राजेन्द्र यादव का रिश्ता तो बहुत पुराना है। गोविन्दाचार्य तो पहले से ही राजेन्द्र यादव का सम्मान करते रहे हैं। यह उत्सव ऐतिहासिक इसलिए होगा क्योंकि गोविन्दाचार्य और अरूंधती-बरबर राव एक साथ एक मंच पर होंगे। इस निमंत्रण कार्ड को देखकर मंगलेश डबराल, अशोक वाजपेयी, उदय प्रकाश और भी कई सारे चेहरे सामने आने लगे। आज के आयोजन का मतलब आवाजाही के खिलाफ रहे विद्वानों ने अपने-अपने खंजर की धार अब तक परख ली होगी। कुछ शायद हंस के इस आयोजन पर चुप्पी ही साधे रखें क्योंकि वे इन दिनों वे ‘जनसता’ प्रकरण में इंगेज होंगे। वे सोच रहे होंगे, सारे इवेंट एक साथ ही होने थे। मेरी संभावना यह कहती है कि इस बार भी बहन अरूंधती हंस के आयोजन में आते-आते ना रह जाएं लेकिन यदि गोविन्दाचार्य वहां बोलकर आते हैं तो थोड़ा बहुत हंगामा तो बनता है गुरू!
लेकिन इसी मुद्दे पर Reyazul Haque बात को नया एंगल देते हुए लिखते है कि दोनों ने गोविंदाचार्य की वजह से हंस के कार्यक्रम का बहिष्कार किया और कार्यक्रम में नहीं आए. टिप्पणी इस तरह से है :
‘क्रांतिकारी कवि वरवर राव और लेखिका अरुंधति राय ने प्रेमचंद जयंती के मौके पर हंस के सालाना आयोजन में न जाने का फैसला किया है. उन्होंने इस आयोजन के बहिस्कार का ऐलान किया है. यह फैसला इस आयोजन में गोविंदाचार्य जैसे प्रतिक्रियावादी और फासिस्ट व्यक्ति और अशोक वाजपेयी जैसी शख्सियत को बुलाए जाने की वजह से किया गया है. इन दोनों को बुलाए जाने के बारे में वरवर राव और अरुंधति को नावाकिफ भी रखा गया. यह आधिकारिक बयान नहीं है और जल्दी ही इस संदर्भ में एक आधिकारिक बयान जारी किया जाएगा. मालूम हो कि हंस ने ऐसी ही गलती 2010 में भी की थी, जब उसने अरुंधति से बिना कन्फर्म किए यह प्रचारित किया था कि विश्वरंजन और अरुंधति प्रेमचंद जयंती वाले आयोजन में बोलने आ रहे हैं. तब भी अरुंधति ने साफ किया था कि उनसे इसके बारे में बात नहीं की गई थी और वे विश्वरंजन के साथ मंच साझा नहीं करेंगी.’
(फेसबुक से साभार)