मोदी सरकार में एक-से-बढ़कर एक लफ्फाज मंत्री हैं जिनकी कथनी और करनी में ज़मीन-आसमान का अंतर है।उनकी बातों में इतना ज्यादा विरोधाभास है कि पूछिए मत।ऐसे ही एक मंत्री हैं गिरिराज सिंह।
गिरिराज हैं तो लघु और सूक्ष्म मंत्रालय मे केंद्रीय राज्यमंत्री लेकिन इस विभाग की बात छोड़कर दुनिया-जहाँ की तमाम बतकही करते हैं। हिन्दू-मुस्लिम और पाकिस्तान पर विवादित बयान देने में तो इन्हें पीएचडी हासिल है।
अब एक बार फिर बयान देकर जनाब सुर्ख़ियों में छाए हुए हैं।इस बार सरकार ने नोटबंदी को नसबंदी से जोड़ दिया है।अपने संसदीय क्षेत्र नवादा(बिहार) में मीडिया के साथ बातचीत में गिरिराज सिंह ने कहा कि देश की जनसंख्या को नियंत्रित करने के लिए नोटबंदी की तर्ज पर नसबंदी भी हो।
जनसंख्या नियंत्रण की दृष्टि से माननीय मंत्री जी का उक्त कथन सही ही प्रतीत होता है।लेकिन यहाँ उनके बयान में विरोधाभास भी पैदा हो गया है।कुछ महीनों पहले उन्होंने ये बयान देकर सनसनी मचाई थी कि हिंदुओं को ज्यादा से ज्यादा बच्चे पैदा करने चाहिए।नहीं तो मुस्लिम बहुसंख्यक और हिन्दू अल्पसंख्यक रह जाएंगे।
उस बयान की वजह से गिरिराज सिंह राष्ट्रीय मीडिया के निशाने पर भी आये थे।लेकिन अब उन्होंने अब जो यू टर्न लिया है वो असमंजस की स्थिति पैदा कर रहा है।ये समझ में नहीं आ रहा कि एक आम नागरिक उनकी कौन सी बात माने।नसबंदी कराये या फिर ज्यादा बच्चे…..! क्योंकि दोनों चीजें एकसाथ संभव नहीं या फिर ये माना जाए कि मंत्रीजी का नया बयान एक ख़ास समुदाय को टारगेट कर दिया हुआ बयान है।
मतलब हिन्दू ज्यादा बच्चे पैदा करे और मुसलमानो की संजय गांधी स्टाइल में ‘नसबंदी’ हो।क्यों ठीक कहा न मंत्री जी।बाकी तो आपलोग खुद समझदार हैं।नोटबंदी संभाल नहीं सके,चले हैं नसबंदी कराने।बच्चों की कतार लगाते – लगाते नसबंदी की कतार लगाने पर क्यों तुले हैं जनाब?
(सार्थक – लेखक राजनैतिक विश्लेषक हैं)