वेद उनियाल,वरिष्ठ पत्रकार –
स्व अतुलजी के अखबार अमर उजाला के प्रति लोगों का विश्वास खबरों के तथ्य, भाषा, निष्पक्षता और संपादकों और लेखक- पत्रकारो के सुंदर आलेख, विश्लेषण के कारण रही है। वह संस्थान में लोगों के चयन और जिम्मेदारी को लेकर बहुत गंभीर थे।
दुख होता है अब इसी अखबार में जब बड़ी-बड़ी गलतियाँ देखने को मिलती है । उदाहरण के लिए चुनाव के मोड़ में लखनऊ में एक विश्लेषण पर ही छह बडी बडी तथ्यात्मक गलतियाँ। किसी ने देखा नहीं किसी ने खबर को जांचा नहीं। अगर पत्रकार से गलती भी हुई भी हो ( गलती किसी से भी हो सकती है) तो समूह संपादक कौ क्या गौर नहीं करना चाहिए था। हम ऊंचे आसन पर बैठकर समाज और लोगों पर व्यंग्य करने के लिए छटपटाते रहते हैं , मगर अखबार और स्वयं अपने को व्यंग्य बनने से नहीं रोक पाते।
खबर में बडी गलतियां हैं।
1- एचएन बहुगुणा ने जगजीवन राम के साथ मिलकर कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा नहीं बनाया था। बल्कि यह एक पार्टी का स्वरूप था। कांग्रेस फार डेमोक्रेसी। खबर में लिखा गया कि मोर्चा बहुत दिन तक नहीं चला। दरअसल जनता पार्टी की जीत के बाद कांग्रेस फार डेमोक्रेसी स्वाभाविक रूप से विलय हुआ था। जनता पार्टी और सीएफडी ने मिलकर चुनाव लडा था।
2- खबर में फिर लिखा गया कि मोर्चा बहुत दिन तक नहीं चला तो बहुगुणा ने मोरारजी देसाई के साथ दमकिपा बनाई यानी दलित मजदूर किसान पार्टी। यह तथ्य अजीब है। कांग्रेस फार डेमोक्रेसी के जनता पार्टी में विलय के बाद बहुगुणा मोरारजी देसाई के नेतृत्व में बनी सरकार में पेट्रोलियम मंत्री बने थे। जनता पार्टी के विघटन के बाद बहुगुणा फिर कांग्रेस में वापस चले गए थे और महासचिव बने। इसके बाद संजय गांधी के साथ नहीं बनने पर उन्होंने कांग्रेस को छोडा उसके टिकट पर जीती लोकसभा की सीट को भी चरण सिंह के साथ मिलकर बनाई थी।
3- पौडी लोकसभा का चुनाव 1982 में नहीं 1980 में हुआ था। बहुत ऐतिहासिक चुनाव था। सात राज्यों के मुख्यमंत्री और इंदिराजी ने स्वयं पौडी में जाकर चुनाव प्रचार किया था लेकिन बहुगुणा 40 हजार मतों से जीते थे। आपको बता दूं कि चुनाव आयुक्त श्याम लाल शकधर ने एक बार बहुगुणा के निवेदन पर चुनाव प्रक्रिया को खारिज किया था। फिर चुनाव हुए और बहुगुणा को जीत हासिल हुई थी।
4- बहुगुणा का इंदिराजी से नहीं बल्कि संजय गांधी से तीखा मतभेद था।संजय गांधी जिस शैली में राजनीति करते थे उसमें वह बहुगुणा जैसे नेता से उनका टकराव स्वाभाविक था। इंदिराजी के दोबारा सत्ता में आने पर लग रहा था कि
कि बहुगुणा मंत्रिमंडल में होंगे लेकिन उन्हें स्थान नहीं मिला। उन्हें महासचिव तो बनाया लेकिन संजय गांधी और उनके लोग उन्हें महत्व नहीं दे रहे थे। लिहाजा बहुगुणा ने पार्टी और सीट छोड़ी थी।
इसी तरह राजीव गांधी से उनके इस तरह मतभेद नहीं थे। लेकिन बहुगुणा फिर कांग्रेस से नहीं जुडे । इलाहबादके चुनाव में उन्हें अमिताभ से पराजय मिली। राजनीति की मुख्य धारा में आने के लिए अलग अलग दल बनाते रहे। । कभी चरण सिंह के साथ कभी राजनारायण के साथ कभी देवीलाल या अजित सिंह के साथ वह अपने राजनीतिक समीकरण बनाते रहे।