रिचा साकल्ले
साल 2001…दैनिक भास्कर भोपाल में सब एडिटर थी…लड़का देखने आ रहा था…मेरी डिमांड के मुताबिक पापा ने एक पत्रकार लड़का ढूंढा वो भी किसी अखबार में था ध्यान नहीं है किसमें था…मैंं ऑफिस से बिड़ला मंदिर पहुंची…क्योंकि यही जगह तय हुई थी देखने के लिए..
बातचीत शुरु हुई…लड़का बोला- ‘बहुत अच्छी बात है तुम इस फील्ड में आईं लेकिन सच बताऊं तो मुझे लड़कियों के लिए ये फील्ड अच्छी नहीं लगती। मैंने कहा अरे तो फिर आप मिलने क्यों आए। लड़का- अरे वो बायोडाटा अच्छा लगा।
फिर वो बोला अखबार में तो नाइट शिफ्ट लगती है आपकी लगती है क्या…मेरी उस वक्त नाइट शिफ्ट नहीं लगती थी लेकिन फिर भी महज उसका मगज (दिमाग) जानने के लिए मैने कहा हां लगती है…तो वो बोला अरे फिर कैसे होगा, आप नाइट शिफ्ट से आकर काम कैसे करेंगी। मैने कहा- वैसे तो कामवाली रखी जा सकती है..वो बोला अरे माताजी को कामवाली का काम पसंद नहीं।
मैने कहा अच्छा आप नाइट शिफ्ट से आकर क्या करते हैं वो बोला- मैं तो आते ही सो जाता हूं। मैने कहा मैं भी ऐसा ही करती हूं। वो बोला- तुम ये जॉब छोड़ दो टीचिंग कर लो…मैने उससे कहा आप पत्रकार लड़की देखना छोड़ दीजिए। मैं उसके रिश्तेदारों से मिले बिना जगह छोड़कर स्कूटी उठाकर घर वापस आ गई। पापा ने उन लोगों को मना कर दिया।
(टीवी पत्रकार रिचा साकल्ले के फेसबुक वॉल से साभार)