ये सेल आखिर किस पर है ?
एक स्त्री देह पर “SALE” की पट्टी लपेटकर फास्टट्रैक ब्रांड को भले ही लग रहा हो कि उसने विज्ञापन की दुनिया में तीर मार लिया हो, उपभोक्ता समाज को ये बताना हो कि फास्टट्रैक के सभी उत्पाद पर फ्लैट 20 फीसद छूट हो तो शहर में भोंपू लगाकर, ढोल पीटने से ज्यादा बेहतर है स्त्री देह छवि को सेल लिखी पट्टी में लपेटकर होर्डिंग्स से लेकर ऑनलाइन शॉपिंग वेबसाइट पर टांग दो.
लेकिन अव्वल तो ऐसा करने के पहले इस गुमान से बाहर आना होगा कि इस तरह की हरकत पहले लिवाइस जैसी कंपनी कर चुकी है और अप टू फीफ्टी पर्सेंट ऑफ के लिए स्त्री देह छवि को अर्धनग्न दिखाकर इस छूट की घोषणा कर चुकी है. ऐसे में ये आइडिया की चोरी से ज्यादा कुछ नहीं है.
लेकिन छूट के लिए स्त्री देह को अर्धनग्न, सेल की पट्टी में लपेटकर दिखाया जाना विज्ञापन पैटर्न का हिस्सा बन जाए और इस पर एथिक्स को लेकर बहसें शुरु हो, कंपनी से ये सवाल करने की सख्त जरुरत तो है ही कि आखिर जब छूट स्त्री-पुरुष के दोनों उत्पादों, घड़ी से लेकर चश्मे तक है तो फिर स्त्री देह के खास हिस्से पर इसे लपेटकर कंपनी क्या संदेश देना चाहता है ?
दूसरी बात कि अब जबकि स्त्री छवि का सांकेतिक विनाश करनेवाले सास-बहू सीरियल से लेकर लंपटता पैदा करनेवाले कई रियलिटी शो तक समाज की बदलती हवा को देखते हुए अपने कार्यक्रमों में स्त्री अधिकार, सम्मान और उनके प्रति संवेदशील होने की मेकअप करने लग गए हैं, विज्ञापन की दुनिया ठीक इसके उलट क्यों जा रही है ?
क्या मीडिया के किसी दूसरे माध्यम में इस तरह सरेआम स्त्री देह छवि पर सेल की पट्टी लगाकर प्रसारित किया जा सकता है ? गौर करें तो विज्ञापन अधिकांश उत्पादों में गैरजरुरी ढंग से स्त्री देह की मौजूदगी को पैटर्न बना लिया है जिसका कि विज्ञापित उत्पाद से दूर-दूर का कोई संबंध नहीं है, फास्ट्ट्रैक का ये विज्ञापन उसी का नमूना है, नया कुछ भी नहीं.
(मूलतः तहलका में प्रकाशित)