विनीत कुमार,मीडिया विश्लेषक-
1-न्यूजरूम में आज ऑक्सीजन कुछ ज्यादा है:
इंडिया टुडे से लेकर एनडीटीवी, आजतक से लेकर एबीपी न्यूज के न्यूज एंकर के चेहरे को पढिए. सबके चेहरे पर सहजता है, खास तरह की खुशी और अपने काम के प्रति संतोष है. वो लगातार एंकरिंग कर रहे हैं लेकिन चेहरे पर एक जरा थकान नहीं है.
इसका एक मतलब तो साफ है कि टेलीविजन के जो भी नामचीन चेहरे हैं, उनके लिए मीडिया का मतलब राजनीतिक खबरें ही है. रोजी-रोटी के लिए क्या एलियन गाय का दूध पीते हैं, चार हजार पुराना ये रहा महामानव जैसी खबरों पर घंटों भले ही तान देते हों लेकिन उनके भीतर की क्षमता राजनीतिक/ चुनावी कवरेज में ही झलकती है.
2-एक ही चैनल पर बीजेपी,कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता को देखे जमाना हो गया था. यूपी,पंजाब,गोवा,उत्तराखंड पर चल रहे एक्जिट पोल को इस बात शुक्रिया तो दिया ही जाना चाहिए कि सब एक साथ नजर आए.
तमाम असहमति के बावजूद न्यूज चैनल को डिब्बाबंद नहीं होना चाहिए, आज की तरह रोज ऐसा ही होना चाहिए.
3-सारे न्यूज चैनल देखकर इसी नतीजे पर पहुंचा कि आज और कल टीवी देखने के लिए एमबीए होना जरुरी है. एमबीए न भी हो तो कम से कम इकॉनमिक्स या कॉमर्स में ग्रेजुएट.
हम जैसे लोग आज फत्तू टाइप से फील कर रहे हैं. पत्रकारिता अभी भी आर्ट्स के लोग पढते-पढाते हैं लेकिन कम से कम एक पेपर मैनेजमेंट का शामिल करना बेहद जरुरी है.