पहले से जो गुलाबी पत्रकारिता होती आयी है, उसमे राजनीतिक खबर के साथ पेड न्यूज को फेंटकर एक नई पत्रकारिता का दौर शुरु हुआ है जिसे आप पिंक से आगे बढ़कर पर्पल जनर्लिज्म कह सकते हैं, ये बैगनी पत्रकारिता है और इन सबके बीच संपादक जैसी संस्था रह नहीं गई है. जो मीडिया चला रहा है, वही चिट फंड में भी लगा है, वही रियल एस्टेट के धंधे में भी लगा है.ऐसे में मीडिया और राजनीति का जो विभाजन बताया जाता है, वैसा व्यावहारिक रूप में है नहीं. (विनीत कुमार)
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