अभय सिंह-
8 नवंबर के बाद नोटबंदी पर मैंने राजनीतिक विश्लेषक होने के नाते इसके राजनितिक प्रभावों पर अपने विश्लेषण लगातार पाठकों के समक्ष रखे।मुझे इस बात का संतोष है की दिल्ली के चमचमाते स्टूडियो में बैठे लाखों वेतन पाने वाले पत्रकार, एंकर ,विश्लेषको की अपेक्षा सही आकलन करने में अधिक सक्षम हूँ।दशको से चुनावों को नजदीक से कवर करने वाले ये पत्रकार यूपी चुनाव में जाति ,धर्म में उलझे रहे एवम् अंत तक भी नहीं समझ पाये की जनता का रुझान किस तरफ है।
कुछ नामी गिरामी पत्रकारों,और मीडिया स्टूडियो में आने वाले विश्लेषकों पर भी सवाल उठाना लाजमी है ।मीडिया जगत के नामी चेहरे एंकर
राहुल कँवल,रवीश कुमार, उर्मिलेश,शेखर गुप्ता, ओम थानवी,यशवंत देशमुख,हरिशंकर व्यास,अभय दुबे,रशीद किदवई,अशोक वानखेड़े,अभिसार शर्मा,किशोर अजवानी ,शरद शर्मा,जैसे अनेकों नामी चेहरों की विश्वसनीयता पर गंभीर सवाल उठे जो कहीं न कही पंजाब में आप की और यूपी में अखिलेश की आंधी होने की बात एग्जिट पोल के बाद भी कर रहे थे।
बड़ी हास्यास्पद बात है की यूपी के पहले ,दूसरे चरण के चुनाव बाद अधिकांश पत्रकारो और विश्लेषकों ने बीजेपी से जाटों की नाराजगी की बात की और गढ़बंधन को भारी बढ़त की सम्भावना जताई। जबकि इसके बिलकुल उलट आज के परिणाम में दोनों चरणों की 141 सीटों में बीजेपी ने 104 सीटें जीती. क्या ये जाटों के नाराजगी थी या मुस्लिमों का ध्रुवीकरण ये सवाल इन पत्रकारों से जरूर पूछना चाहिए।
फर्स्टपोस्ट के संपादक संजय कुमार यूट्यूब पर अपने गलत चुनावी विश्लेषण पर माफ़ी मांगेंगे या इस्तीफा देंगे।वहीँ सी वोटर के यशवंत देशमुख के पुरे एग्जिट पोल पर ही सवालिया निशान भी लग गया ये बताने की बिलकुल भी जरुरत नहीं है।
बिहार चुनाव बीजेपी की जो हालत में हुई थी कमोवेश उससे भी बदतर हालत पंजाब में आम आदमीपार्टी,और यूपी में सपा की हुई है।पेड न्यूज़, ट्विटर वार अरबो के विज्ञापन,पारिवारिक नौटंकी से जनता का रोष मिलता है वोट नहीं। चुनाव जनता के भरोसे लड़े जाते है ना की मीडिया हाइप से।
(लेखक राजनीतिक विश्लेषक हैं)