नदीम एस.अख्तर
सिर्फ पाकिस्तान, कश्मीर, अमेरिका और मुंबई जैसी जगहों पर लोगों के मरने पर इस देश के लोगों का खून खौलता है. बाकी टाइम देश में शांति छाई रहती है. अमन-चैन कायम रहता है. मीडिया-सरकार-सोशल मीडिया, हर जगह. कोई शर्मिंदिगी नहीं जताता, कोई अफसोस नहीं करता, कोई कविता नहीं लिखता, कोई मोमबत्ती की फोटुक नहीं लगाता, कोई अपनी जातीय-मजहबी पहचान को लेकर पश्चाताप-संताप नहीं करता. कोई बदला लेने की बात नहीं बोलता, कोई किसी को नीचा दिखाने का भाषा का इजाद नहीं करता, कोई एंकर या रिपोर्टर सुपर-चार्ज नहीं होता, किसी सम्पादक का खून नहीं खौलता, किसी की आंख का पानी नहीं मरता, कोई मातम नहीं मनाता, कोई 2 मिनट का मौन नहीं रखता, कोई अतिउत्साही फेसबुकीय-ट्विटरीय प्राणी अपना मौन व्रत नहीं तोड़ता और कोई अपनी मर चुकी भावनाओं-एहसास को अल्फाज नहीं देता…..
सब के सब मौन हैं. घुप सन्नाटा…गहरा सन्नाटा…कुछ भारत रत्न के अलंकरण के प्रकाशोत्सव में नहाए हुए और कुछ अपने डेली रूटीन में बिजी. रगों में दौड़ते रहने के ना थे जी तुम कायल, अब असम को देख तुम्हारी आंख से जो ना टपका, फिर वो लहु क्या है…???!!!!
एक भारतीय अखबार -नवभारत टाइम्स- के वेब संस्करण की हेडलाइन देखिए. –बोडो उग्रवादियों ने असम में 48 लोगों की हत्या की—-
अब 50 से ज्यादा मासूमों-गरीबों को अंधाधुंध गोलियों से छलनी करने के बाद भी अगर ये बोडो वाले –आतंकवादी— ना होकर —उग्रवादी— बने रहते हैं तो भारत के लोगों और भारत की मीडिया, आपकी मर्जी.
वक्त आ गया है कि -उग्रवादी- -चरमपंथी- जैसे शब्दों का त्याग करके आप सीधे -आतंकवादी- शब्द का इस्तेमाल शुरु करें. और हे भारत के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री जी, इस बार तो दुश्मन-कातिल सरहद पार से नहीं आए हैं. आपके अपने ही देश में छिपे-घुसे बैठे हैं. ढूंढकर क्यों नहीं निकालते उनको? अब कौन सा बहाना है आपके पास??!!!
आप अमेरिका और इस्राइल की तारीफ करते नहीं थकते. अगर वहां देश में रह रहे ऐसे आतंकवादियों ने 50 मासूमों की जान ले ली होती तो क्या अमेरिका या इस्राइल जैसा देश खामोश रहता. ओसामा बिन लादेन को उन्होंने हजारों किमी दूर दूसरे देश पाकिस्तान में ढूंढकर और घुसकर मारा. और आप लोग क्या कर रहे हैं??!!!
शोले के वीरू की भाषा में कहूं तो एक-एक को चुन-चुनकर मारता. जरूर मारता. लेकिन आप तो अपने घर में बैठे इन आतंकवादियों को ना तो मार सकते हैं और ना पकड़ सकते हैं. और रही मीडिया की बात. तो अभी वह अपने शैशवकाल में है. बेचारे -अक्ल के धनी- अभी यही फैसला नहीं कर पा रहे हैं कि ये चरमपंथी हैं, उग्रवादी हैं या फिर आतंकवादी ??!!! हम भारत के लोग इस मानवीय त्रासदी को जब सही-सही लिख भी नहीं पा रहें हैं तो बोलेंगे क्या और करेंगे क्या ???!!!
(लेखक आईआईएमसी में अध्यापन कार्य में संलग्न है)