साठ के आखिरी दशक और आगे चलकर सत्तर तक जब हिन्दुस्तान में टेलीविजन यानी दूरदर्शन को यहां के ब्यूरोक्रेट चला रहे थे, उस वक्त पाकिस्तान के टेलीविजन यानी पीटीवी को वहां के वो प्रोग्रेसिव इन्टलेक्चुअल चला रहे थे जिनके पास थिएटर, संगीत और दूसरी कलाओं की गहरी समझ थी.
मुझे ये बात डॉन डॉट कॉम के मशहूर कॉलमनिस्ट और कल्चरल क्रिटिक नदीम एफ पराचा ने मेल के जरिए बतायी. उन्होंने ये भी कहा कि हालांकि उस वक्त सेन्सरशिप का मसला दोनों देशों में समान रूप से काम कर रहा था लेकिन इस दौरान पाकिस्तान में एक से एक वो टेलीफिल्में बनी जिनमे कि मशहूर पटकथा लेखकों, स्थापित थिएटर कलाकारों की भागीदारी होती.
जी मीडिया के नए चैनल जी जिंदगी को लेकर करनजीत कौर ने caravan( नवम्बर 14) पत्रिका में लंबा, दिलचस्प और रिसर्च आर्टिकल लिखा है. इस लेख में जिंदगी चैनल के बहाने कौर ने पाकिस्तान और हिन्दुस्तान के टीवी चैनलों और खासकर दूरदर्शन और पीटीवी के दौर की विस्तार से चर्चा की है. मनोरंजन चैनलों में दिलचस्पी रखनेवाले के लिए ये एक जरूरी लेख तो है ही, साथ ही सत्ता के बदलने के साथ टेलीविजन का चरित्र बदलता है, इसे भी समझने के लिए इस लेख को ठहरकर पढ़ा जा सकता है.
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