ओम थानवी
दूरदर्शन के एक अधिकारी-कवि हैं जो अपने आप को मानो कबीर, मीर, ग़ालिब, पार्थ, सार्त्र आदि का अवतार समझते हैं और आजकल अपने “महाकाव्य” ‘बाग़-ए-बेदिल’ को किसी नामी लेखक के हाथों थमा उसका फोटो खींच फेसबुक पर चस्पां कर देने के लिए जाने जाते हैं। फेसबुक पर हाल ही शाया उनका यह “कवित्त” एक मित्र ने मुझे पढ़वाया हैः
< “रावण ने सीता का अपहरण ज़रूर करवाया था लेकिन ज़ोर-ज़बरदस्ती नहीं की बल्कि सहमति की कोशिश और इन्तिज़ार करता रहा, पार्थ! लेकिन इस तेज़-तर्रार पंजाबी रावण ने मिथिला-बिहार की बेटी के साथ गोवा के एक पाँच-सितारा होटल में ज़ोर-ज़बरदस्ती की, सार्त्र! रावण तो सचमुच विद्वान था लेकिन यह द्वि-कौडिक अंग्रेज़ी-लेखक और पीत-पत्रकार दूसरे, तीसरे और चौथे बलात्कार पर उतारू है, अरुन्धती! (बलात्कार नम्बर दो-१(१६२)//कृक//प्रथम पेय//) और शूर्पण खां इन दिनों अंग्रेज़ी में रावण का बचाव कर रही थी, देशवासियो!” >
आप कुछ समझे? ये कथित महाकवि “पंजाबी रावण” और “मिथिला-बिहार की बेटी” उपमाएं देकर क्षेत्रवाद की आग ही नहीं भड़का रहे, पीड़ित पत्रकार युवती की पहचान की ओर भी स्पष्ट संकेत कर रहे हैं।
इतना ही नहीं, कवि महाशय प्रकारांतर से बलात्कारी को जोर-जबरदस्ती न कर (रावण की तरह!) जैसे “सहमति” की कोशिश और “इंतिज़ार” की प्रेरणा भी दे रहे हैं! क्या “प्रथम पेय” के बाद ऐसे ‘कवि’ भूल जाते हैं कि रावण और उसकी बहन शूर्पणखा (शूर्पण खां नहीं) के साथ वे सीता के बहाने जिस युवती पत्रकार की बात कर रहे हैं, वह तरुण तेजपाल के समक्ष बेटी-सरीखी थी और मातहत सहकर्मी भी?
बहुत तरस आता है ऐसे “काव्य” बोध पर। और खीझ भी होती है।
(स्रोत- एफबी)







