नदीम एस.अख्तर,वरिष्ठ पत्रकार –
“आतंकवादी का देशभक्त पिता”। अच्छी हेडिंग है। इस देश का मीडिया सब कुछ बेचता है। सेक्स से लेकर आतंकवाद तक। और देशभक्ति सबसे ज्यादा बिकती है। पर ये बरसाती पत्रकार ये नहीं जानते कि जब पत्रकारों की साख बिक जाती है तो लोकतंत्र अनाथ हो जाता है। सो लगे रहिए। मालिक को मुनाफा चाहिए और आपको नौकरी। तभी तो ये मीडिया इंडस्ट्री है। इंडस्ट्री मने कारोबार और कारोबार में सिर्फ मुनाफा भगवान होता है।
खबरें अब बेचीं जाती हैं, छापी या दिखाई नहीं जातीं। हमें तो पुराने मंजे लोगों ने ट्रेंड किया था, सो थोड़ी बहुत समझ बन गई। पत्रकारिता की नई पीढ़ी का तो भगवान ही मालिक है क्योंकि सिखाने वाली पीढ़ी अब न्यूज़रूम से गायब है। अब एडिशन टाइम, revenue target, खबर तान दो, गिरा दो और शो रोल वाली पीढ़ी न्यूज़रूम के कप्तान हैं। जाने दीजिए। क्या करिएगा। यहाँ कुएं में ही भांग पड़ी है। और समाज के क्या कहने। जेट एयरवेज के कर्मचारियों को निकाला जाता है तो पूरा मीडिया भूचाल ला देता है पर थोक के भाव में पत्रकारों की नौकरी जाती है तो ना मीडिया चूं करता है और ना समाज ।
फिर भी सरकार से लेकर समाज तक पत्रकारों से निष्पक्ष और ईमानदार रहने की आस रखते हैं। अरे भाई! वो भी आपकी तरह ही इंसान है, उसका भी घर-बार है, जीवन चलाना है, वो मंगल ग्रह से आया प्राणी नहीं है।सो चलने दीजिए ये सब। जैसा समाज, वैसा पत्रकार। सत्ता को और क्या चाहिए अगर पत्रकार उसकी जूती के नीचे आ जाए। तभी तो वो लोकतंत्र को अपनी जूती के नीचे रखेगा।सो चलने दीजिये। अच्छा है। अगर यही हाल रहा तो 30-40 साल बाद इस देश को पत्रकारों की ज़रूरत ही ना रहे। जो सत्ता बोलेगी, वही देखिएगा और वही सुनिएगा। अच्छा है।