भोपाल। पत्रकारिता मात्र रोजगार का माध्यम नहीं है, बल्कि यह सामाजिक सरोकारों से जुड़ा पेशा है। एक रोते हुए व्यक्ति के आँसू पोंछने की ताकत पत्रकारिता में है। पत्रकारिता से समाज को उम्मीदें हैं। एक सामान्य आदमी पत्रकारिता पर भरोसा रखता है। उसके भरोसे को बनाए रखना पत्रकारों की जिम्मेदारी है। पत्रकारिता में तेजी से बदलाव आ रहे हैं। तकनीक बदल रही है। नए माध्यम आ रहे हैं। इस परिवर्तन के साथ हमें कदमताल करते हुए मीडिया में आगे बढऩा चाहिए, लेकिन अपने मूल्यों को साथ लेकर। व्यावसायिकता के इस दौर में भी मूल्यों की पत्रकारिता कठिन कार्य नहीं है। बस एक पहल की जरूरत है। यह विचार माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय के ‘पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन’ में वक्ताओं ने प्रकट किए। सम्मेलन का आयोजन रजत जयंती वर्ष के तारतम्य में किया गया।
पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन के उद्घाटन समारोह के मुख्य वक्ता एवं राज्य सभा टीवी के कार्यकारी निदेशक राजेश बादल ने कहा कि समाचार पत्रों में अच्छा लिखने और टेलीविजन पर अच्छा दिखाने के लिए अच्छा पढऩा सबसे पहली शर्त है। भारत में मात्र पाँच साल में टेलीविजन इंडस्ट्री खड़ी हो गई। दुनिया में ऐसा उदाहरण अन्य कहीं नहीं मिलता। टेलीविजन की इस तरक्की में हमने तकनीक अपडेट की, कारोबार बढ़ा लिया, लेकिन कंटेंट के संकट से पार नहीं पा सके। उन्होंने बताया कि आने वाले समय में मीडिया का और अधिक विस्तार होना है। संभाग और जिले स्तर तक मोबाइल टीवी चैनल आएंगे। सब जगह अच्छे पत्रकारों की जरूरत है, जो अच्छा कंटेंट रच सकें। उन्होंने बताया कि अच्छे कंटेंट के लिए हमें अपने सरोकारों से जुड़ा रहना होगा। एक सार्थक पहल करते हुए हम अपनी विरासत और महापुरुषों पर कार्यक्रम बना सकते हैं। श्री बादल ने कहा कि यह एक मात्र कार्यक्षेत्र है, जहाँ काम करने के बाद थकान नहीं होती, बल्कि आनंद मिलता है। दिनभर काम करने के बाद एक संतुष्टि होती है। हम कार्यालय से तरोताजा होकर निकलते हैं।
मानवीय संवेदनाओं का आंदोलन : पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन के मुख्य अतिथि एवं भारतीय पुस्तक न्यास के अध्यक्ष बल्देव भाई शर्मा ने बताया कि भारत की पत्रकारिता समाचारों को प्रेषित करने का उपक्रम और बौद्धिक आयोजन मात्र नहीं है, बल्कि भारतीयता की चेतना को जागृत करने का नाम है। उन्होंने कहा कि भारतीय पत्रकारिता मानवीय संवेदनाओं का निरंतर चलने वाला आंदोलन है। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय ने इसी पत्रकारिता को अपने विद्यार्थियों के जरिए आगे बढ़ाया है। आज देश-दुनिया में यह विश्वविद्यालय पत्रकारिता का ब्रांड बन गया है। अपनी 25 साल की यात्रा में विश्वविद्यालय ने जो मानक स्थापित किए हैं, उनके कारण इसकी ख्याति देश की सीमाओं के बाहर पहुँच गई है। सेंटर ऑफ एक्सीलेंसी के रूप में इस विश्वविद्यालय को मान्यता मिलनी चाहिए। उन्होंने कहा कि व्यावसायिकता, तकनीक और दूसरे विकास के साथ कदमताल करते हुए विश्वसनीयता को बचाए रखना बहुत जरूरी है। यह तब ही संभव है, जब हम पत्रकारिता में अनेक उपलब्धियाँ अर्जित करने के बाद भी अपने सामाजिक दायित्व बनाए रखेंगे। श्री शर्मा ने कहा कि जीवन को धन्यता देने वाला काम पत्रकारिता है। यह काम सुख और संतुष्टि देता है।
कहानी जैसी है 25 साल की यात्रा : संस्थापक महानिदेशक श्री राधेश्याम शर्मा ने विश्वविद्यालय की शुरुआत के कई प्रसंग सुनाए। उन्होंने कहा कि 1991 से शुरू हुई विश्वविद्यालय की यात्रा एक कहानी की तरह लगती है। प्रारंभ से हमने ध्यान रखा कि मीडिया के क्षेत्र में आ रही तकनीक को ध्यान में रखकर पाठ्यक्रम तैयार किया जाए। इसके साथ ही यह भी ध्यान रखा कि विश्वविद्यालय की स्थापना महान पत्रकार माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर हुई है, इसलिए उनके मूल्यों को ही आगे बढ़ाया जाए। उन्होंने बताया कि सौभाग्य से पं. माखनलाल चतुर्वेदी से मेरी मुलाकात हुई थी। उन्होंने पत्रकारिता का मंत्र बताया था कि यह कलम रुकनी नहीं चाहिए, भटकनी नहीं चाहिए और न ही कभी झुकनी चाहिए। श्री शर्मा ने कहा कि राष्ट्र और राष्ट्रभक्ति के प्रति माहौल बनाने की जो प्रेरणा हमें माखनलाल चतुर्वेदी से मिली है, उसे आगे बढ़ाने की जरूरत है।
एक कदम आगे की योजना : कुलपति प्रो. बृज किशोर कुठियाला ने अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि विश्वविद्यालय का उद्देश्य भविष्य में मीडिया के विकास और विस्तार को ध्यान में रखकर ‘एक कदम आगे’ रहने का है। विश्वविद्यालय की इस यात्रा में तीन महत्त्वूर्ण घटनाएं हुईं। पहली, पत्रकारिता में आ रहे भटकाव को रोकने के लिए माखनलाल चतुर्वेदी के नाम पर इस विश्वविद्यालय की स्थापना होना। दूसरी, जब विश्वविद्यालय में पत्रकारिता के साथ-साथ कम्प्यूटर की शिक्षा को शामिल किया गया। तीसरी, जब विश्वविद्यालय ने अध्ययन केन्द्र शुरू किए। प्रो. कुठियाला ने कहा कि डिजिटल भारत (कम्प्यूटर साक्षरता) बनाने में विश्वविद्यालय की बड़ी भूमिका है। प्रतिवर्ष विश्वविद्यालय से बड़ी संख्या में विद्यार्थी कम्प्यूटर के कोर्स पीजीडीसीए और डीसीए करते हैं। हमने भविष्य को ध्यान में रखकर एमएससी इन साइबर सिक्योरिटी, एमएससी इन बिग डेटा एनालिसिस और मीडिया रिसर्च के पाठ्यक्रम शुरू किए हैं। विश्वविद्यालय कंटेंट प्रोडक्शन, प्रशिक्षण और तकनीक के क्षेत्र में कार्य कर रहा है। प्रिंटिंग टेक्नॉलोजी के बाद अब ट्रांसमिशन तकनीक का पाठ्यक्रम प्रारंभ करने की योजना है। उन्होंने बताया कि संचार शोध के क्षेत्र में विश्वविद्यालय ने देश और देश के बाहर एक महत्त्वपूर्ण स्थान बनाया है। वर्तमान में विश्वविद्यालय में 17 विषयों पर शोध परियोजनाएं चल रही हैं। पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन की प्रस्तावना कुलाधिसचिव लाजपत आहूजा ने रखी और आभार प्रदर्शन कुलसचिव दीपक शर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन जनसंचार विभाग के अध्यक्ष संजय द्विवेदी ने किया। इस अवसर पर पूर्व विद्यार्थियों के अनुभव पर आधारित लेखों की पुस्तक ‘रजत पथ’ और शोध पर आधारित पुस्तक ‘सामाजिक अनुसंधान और सर्वेक्षण के मूल तत्व’ का विमोचन भी किया गया।
विद्यार्थियों ने साझा की सफलता की कहानियाँ : पूर्व विद्यार्थी सम्मेलन में 1991 से लेकर 2016 तक के विद्यार्थी शामिल हुए। इस अवसर पर उन्होंने अपनी सफलता की कहानियाँ साझा कीं। 1992 के विद्यार्थी रहे विजय मनोहर तिवारी ने कहा कि गणित का अध्यापन छोड़कर पत्रकारिता का पाठ्यक्रम करने विश्वविद्यालय में आए थे। आज वह पत्रकारिता में आकर धन्यता महसूस कर रहे हैं। इस पेशे के कारण उन्हें भारत की आत्मा को बहुत करीब से देखने का मौका मिला। कम्प्यूटर के विद्यार्थी रहे अभिषेक माथुर ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा शुरू किया गया साइबर सिक्योरिटी का पाठ्यक्रम गेम चेंजर है। यह विश्वविद्यालय को नई पहचान देगा। वहीं, रिचा वर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय में उन्हें घर से दूर होकर भी घर जैसी अनुभूति होती थी। पत्रकारिता के विद्यार्थी रहे धर्मेंद्र पैगवार ने कहा कि पत्रकार को आंतरिक प्रतिस्पद्र्धा से जूझने के लिए भी तैयार किया जाना चाहिए। अपेक्स बैंक के जनसंपर्क अधिकारी अभय प्रधान ने कहा कि विश्वविद्यालय से उन्होंने जनसंपर्क का पाठ्यक्रम किया, जिसका उन्हें बहुत लाभ मिला है। वहीं, रवि मिश्रा ने कहा कि दुविधाओं से घबराना नहीं चाहिए, दुविधाएं हमें नए रास्ते खोजने में मदद करती हैं। चैतन्य चेतन ने कहा कि असफलताओं को सफलता की कुंजी समझना चाहिए। इसके अलावा नैना यादव, अंकुर विजयवर्गीय, सिद्धांत श्रीवास्तव और दीपक विश्वकर्मा ने भी अपने विचार रखे। सब ने कहा कि एक लम्बे समय बाद भोपाल आकर पुरानी यादें ताजा हो गई हैं।