रवीश ने बजट से पहले बुलाया,लेकिन बेइज्‍जत होकर खाली हाथ वापस आना पड़ा

विनीत कुमार

बजट के दिन हिंदी चैनलों पर सबसे बिकाऊ चीज होती है हिंदी. पूरा बजट हिंदी में की बड़ी-बड़ी पट्टियाँ चलती है..ये चैनल हम दर्शकों को एकदम से चम्पू समझते हैं..भाई जब तुम 364 दिन अंग्रेजी का माल लंगड़ी हिंदी में अनुवाद करके चलाते हो तो आज क्या अनुवाद शिरोमणि हो जाओगे..फिर जब तुम्हारी सरकार ही अंग्रेजी में बजट पेश करती है तो उसकी बाबू हिंदी करके जो भाषा के बजाय प्रेतनी लगने लग जाती है, क्या तीर मार लोगे..न सही हिंदी और अंग्रेजी तो मासाअल्लाह के बीच आप जो बजट के प्रोग्राम दिखाते हो उससे हम इतना ही समझ पाते हैं कि आप जिसे जनता की मजबूरी बताकर हिंग्लिश में बजट पेश करते हो और अचानक से रघुविरी हिंदी में घुस जाते हो वो दरअसल तुम्हारी खुद की हैसियत की सीमा है..

Abhishek Srivastava

हाहा… एक बार की बात है, शायद 2011 था, रवीश ने फोन किया बजट से पहले। बोले, आना है और विद्य़त की गति से सिंक्रॉनिक अनुवाद करते जाना है बजट भाषण का। मैं खुद फंसा हुआ था, सो मैंने किसी और को लहा दिया। जिसे लहाया, वे एक पुराने जानकार आर्थिक पत्रकार और बेजोड़ अनुवादक थे। बेचारे 10 बजे जीके पहुंच गए। दो घंटा इतज़ार किए। रवीश को फोन लगाए। मुझे फोन करते रहे। अंतत: उन्‍हें बेइज्‍जत होकर खाली हाथ वापस आना पड़ा क्‍योंकि अचानक चैनल की हिंदी में अनुवाद करने को लेकर पॉलिसी ही बदल गई। तब से मैंने हाथ जोड़ लिया टीवी के अनुवाद से। अपनी क्रेडिट तो खैर कैसे न कैसे बच गई।

(स्रोत-एफबी)

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